सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर( Jammu kashmir) के उपराज्यपाल (एलजी) द्वारा विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने की व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। बता दें कि न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा, पहले मामले को लेकर हाई कोर्ट जाएं।पीठ ने आदेश दिया, हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर वर्तमान याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट जाने के लिए स्वतंत्र हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने याचिका के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है। पीठ में न्यायमूर्ति संजय कुमार भी शामिल थे।
जम्मू-कश्मीर( Jammu kashmir) पुनर्गठन अधिनियम 2019 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन अधिनियम 2013 के अनुसार, सभी पांच मनोनीत सदस्यों को सरकार गठन में मतदान का अधिकार होगा।मनोनीत सदस्यों में दो महिलाएं होंगी; दो कश्मीरी पंडित विस्थापित समुदाय से होंगे, जिनमें कम से कम एक महिला होगी; और एक पश्चिमी पाकिस्तान का शरणार्थी होगा।नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को श्रीनगर स्थित राजभवन में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया था।
विधानसभा की 90 सीटों के लिए हाल ही में हुए चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के 42 उम्मीदवार जीते हैं, जबकि सहयोगी कांग्रेस के छह और माकपा का एक सदस्य विजयी रहा है। वहीं भाजपा के 29, पीडीपी के तीन, आम आदमी पार्टी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के एक-एक सदस्य विधानसभा पहुंचे हैं। इसके अलावा सात निर्दलीय भी जीते हैं।जीतने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों में से प्यारे लाल शर्मा, सतीश शर्मा, मोहम्मद चौधरी अकरम, डॉ. रामेश्वर सिंह और मुजफ्फर इकबाल खान समेत ज्यादातर ने एनसी को समर्थन देने का फैसला किया है। आप के एकमात्र विजेता मेहराज मलिक ने भी कहा है कि वह एनसी को समर्थन देंगे।
अब्दुल्ला ने कहा था, कैबिनेट का पहला काम केंद्र से जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए प्रस्ताव पारित करना होना चाहिए। इसके बाद मुख्यमंत्री को प्रस्ताव लेकर दिल्ली जाना चाहिए और सरकार से हमारे राज्य का दर्जा बहाल करने का अनुरोध करना चाहिए।उमर अब्दुल्ला ने स्वीकार किया कि ऐसी आशंकाएं हैं कि केंद्र शासित प्रदेश में सरकार की शक्तियां सीमित होंगी।