आपको बता दें इस दौरान उन्होंने आर्टिकल 35ए का भी जिक्र करते हुए कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच भेदभाव होता था। वहां रहने वाले लाखों लोगों को वोट डालने, पढ़ाने करने और रोजगार के समान अवसर जैसे मूल अधिकार भी नहीं मिलते थे। उन्होंने कहा कि इस बात को तो चीफ जस्टिस ने भी स्वीकार किया है कि आर्टिकल 35ए लोगों से भेदभाव करने वाला होता था। 5 अगस्त, 2019 के फैसले को सही करार देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसके बाद ऐसा कोई निर्णय नहीं हुआ है, जिससे संविधान का उल्लंघन होता हो।