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J&K Assembly Election : आतंकी गतिविधियों के बीच 2023 में जम्मू कश्मीर में चुनाव कराना बड़ी चुनौती

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कब होंगे इसपर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। 2019 में धारा 370 के हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर चुनाव का इंतजार कर रहा है।

क्षेत्रीय पार्टियां भी पिछले कई महीनों से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव करने की मांग कर रही हैं। ऐसे में आधिकारिक सूत्रों के अनुसार सुरक्षा हालात ठीक रहे तो 2023 के अप्रैल या मई में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। हालांकि हाल ही में घटित हो रही आतंकी घटनाओं को देखते हुए जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की सिफारिश के बाद जम्मू-कश्मीर की मतदाता सूची को संशोधित करने की कवायद पूरी कर ली है। इस कवायद के बाद केंद्र शासित प्रदेश में लगभग 7 लाख से ज्यादा नए मतदाता जुड़ गए हैं।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए रूपरेखा तैयार करने में मतदाता सूची का संशोधन आखिरी कदम था। इसके पूरा होने के साथ ही अब गेंद चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के पाले में है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसके लिए प्रयास करना शुरू कर दिया है।

प्रवासी श्रमिकों और अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों पर आतंकवादी हमलों ने 2022 में सुरक्षा एजेंसियों को काफी सक्रिय रखा। जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के कम से कम 14 सदस्य, जिसमें 3 कश्मीरी पंडित भी शामिल हैं, की इस साल आतंकवादियों ने हत्या कर दी है।

वहीं स्थानीय कर्मचारियों, पत्रकारों और लोकल नेताओं को आतंकियों से मिल रहीं धमकियां भी चिंता का विषय बनी हुई है। ये घटनाएं जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति के आधिकारिक दावे को खोखला साबित करते हैं। 2023 में भी इन घटनाओं को रोकना बड़ी चुनौती रहने वाला है।

यही वजह है कि इन सबके बीच अगले साल अगर चुनाव आयोग जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का निर्णय लेता है, तो सुरक्षा एजेंसियों के लिए वहां अनुकूल वातावरण बनाना एक बड़ी जिम्मेदारी होगी। सूत्रों की मानें तो इसी को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आतंकी घटनाओं पर नकेल कसने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।

गृह मंत्रालय ने हाल ही में एक बैठक कर सुरक्षा एजेंसियों से जम्मू कश्मीर की सुरक्षा को लेकर रिपोर्ट भी मांगी है। जम्मू कश्मीर में अगर जल्द चुनाव होने की स्तिथि बनती है, तो मंत्रालय की तरफ से सुरक्षा एजेंसियों को हर परिस्थिति से निपटने और अनुकूल वातावरण तैयार करने के निर्देश भी दिए गए हैं।

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने हाल ही में राज्यसभा में बताया कि जम्मू कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। वहीं आतंकवादी हमलों में भी काफी कमी आई है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार घाटी में वर्ष 2018 में 417 आतंकी घटनाएं हुई थीं, जो कम होकर वर्ष 2021 में 229 हो गई है।

वहीं इस साल नवंबर 2022 तक जम्मू कश्मीर में 123 आतंकी घटनाएं दर्ज की गई हैं। वहीं दूसरी तरफ गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक जम्मू कश्मीर में इस साल नवंबर तक सुरक्षा बलों ने अलग अलग मुठभेड़ में 180 आतंकियों को भी मार गिराया है।

जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए केन्द्र सरकार कई उपाय भी कर रही है। एक अधिकारी ने बताया कि इन उपायों में रणनीतिक बिंदुओं पर चौबीसों घंटे नाकाबंदी, देश विरोधी तत्वों के खिलाफ कानून का सख्त प्रवर्तन सहित आतंकवादी संगठनों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए गहन घेरा और तलाशी अभियान चलाना शामिल है।

इसके अलावा उन लोगों पर निगरानी रखना जो आतंकवादियों को सहायता प्रदान करने का प्रयास करते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करना, जम्मू-कश्मीर में कार्यरत सभी सुरक्षा बलों के बीच वास्तविक समय के आधार पर खुफिया सूचनाओं को साझा करने के साथ ही दिन और रात में एरिया डोमिनेशन और उपयुक्त तैनाती के माध्यम से सुरक्षा व्यवस्था करना शामिल है।

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद से वहां का माहौल ही पूरी तरह से बदल गया है। यहां सरकार ने परिसीमन के जरिये काफी कुछ बदलने की कोशिश की है।

नए पैटर्न में जम्मू में 43 और घाटी में 47 सीटें हैं। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए भी 24 सीटें रखी गई हैं। वहीं परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट में फैसला लंबित है। दो याचिकाओं में परिसीमन को गलत बताया गया है।

हालांकि केंद्र, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और चुनाव आयोग अपने कदम को सही मानता है। कोर्ट ने इस पर 1 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब नए साल में कभी भी इसको लेकर फैसला आ सकता है। इसका असर जम्मू-कश्मीर सहित 2024 लोकसभा चुनाव में भी पड़ सकता है।

वहीं सूत्रों के मुताबिक हाल में आई खुफिया एजेंसियों की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि घाटी में लोकल दहशतगर्दों के मुकाबले विदेशी (पाकिस्तानी) आतंकियों की तादाद बढ़ी है।

यही नहीं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठन भारत में घुसपैठ के नए नए तरीके भी अपना रहे हैं। ये सुरक्षाबलों के लिए अभी भी बड़ी चिंता बने हुए हैं। इन सबसे निपटना और चुनाव के लिए अनुकूल वातावरण बनाना केंद्र सरकार और एजेंसियों के लिए 2023 में एक बड़ी चुनौती होगी।