गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। यह झटका उन्हें केंद्र से लेकर राज्य स्तर तक देखने को मिल रहा है। एक तरफ उनके इस्तीफे के बाद से आनंद शर्मा, पृथ्वीराज चव्हाण, भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेताओं ने उनके घर पर बैठकें की हैं। वहीं मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे नेताओं ने कांग्रेस की चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। साफ है कि ये घटनाएं कांग्रेस में आने वाले तूफान का संकेत हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीर में इससे भी बड़ा भूकंप आता दिख रहा है। जहां कांग्रेस नेताओं के थोक भाव आजाद के समर्थन में कांग्रेस से इस्तीफा दे रहे हैं और इस सूची में पूर्व उपमुख्यमंत्री से लेकर कई वरिष्ठ नेता शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर से अब तक करीब 64 कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
क्या है आजाद की कश्मीर योजना
26 अगस्त को कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद गुलाम नबी आजाद कई मौकों पर साफ कर चुके हैं कि वह नई पार्टी बनाएंगे और जिस तरह से कांग्रेस नेता जम्मू-कश्मीर में इस्तीफा दे रहे हैं इससे साफ है कि आजाद ने जम्मू-कश्मीर में आगामी चुनाव को देखते हुए अपनी तैयारी शुरू कर दी है। उनके साथ पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद, पूर्व मंत्री माजिद वानी, घरू चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हुए हैं। आजाद का यह कदम कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है क्योंकि अब तक पार्टी राज्य में गुलाम नबी आजाद पर निर्भर थी। लेकिन आजाद उनसे अलग हो गए हैं और अब वह 4 सितंबर को जम्मू-कश्मीर में रैली करने वाले हैं। आजाद ने रैली के दिन को उस दिन के तौर पर चुना है जिस दिन कांग्रेस महंगाई पर मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने जा रही है। साफ है कि आजाद प्रदेश में कांग्रेस को कोई मौका नहीं देना चाहते।
2005 में जिताई थी आजाद ने कांग्रेस
आजाद के नेतृत्व में पिछली बार कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में अच्छा प्रदर्शन किया था। 2005 में उसने विधानसभा चुनाव में 21 सीटें जीती थीं। और आजाद ने 2005 और 2008 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। और तब से राज्य में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चौथे नंबर पर थी। चुनाव में पीडीपी को 28, बीजेपी को 25, नेशनल कांफ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं। अब जबकि कांग्रेस नेता थोक भाव में आजाद के साथ पार्टी छोड़ रहे हैं तो पार्टी के लिए इस झटके से उबरना आसान नहीं होगा।
किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं आजाद
राज्य विधानसभा की सीटों की संख्या अब 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई है। इनमें से 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। अभी तक जम्मू में 36 और कश्मीर में 46 सीटें थीं। इन 90 सीटों में से 9 सीटों को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए जाने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की नई विधानसभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। क्योंकि यह अब केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। ऐसे में आगामी चुनाव बदली हुई परिस्थितियों में होंगे।
गुलाम नबी आजाद की खासियत यह है कि वह जम्मू-कश्मीर के उन गिने-चुने नेताओं में से हैं, जिन्हें घाटी से लेकर दिल्ली तक स्वीकार्यता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें पसंद करते हैं। ऐसे में नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला भी कांग्रेस छोड़कर उनके स्वागत के लिए तैयार नजर आ रहे हैं। इसके अलावा वह अलगाववादी विरोधी मुसलमानों की पसंद भी रहे हैं और हिंदू समुदाय भी उन्हें वोट देता है। ऐसे में स्वतंत्र चुनाव किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं। खासकर तब जब किसी भी पार्टी को बहुमत न मिले।
गुलाम नबी आजाद ने ऐसे समय में कांग्रेस छोड़कर पार्टी बनाने का ऐलान किया है, जब सिर्फ जम्मू-कश्मीर में ही विधानसभा चुनाव नहीं हैं। बल्कि चुनाव में करीब 25 लाख नए मतदाताओं के जुड़ने की उम्मीद है। ऐसे में अगर गुलाम नबी आजाद कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ते हैं तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है।