तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा आज जम्मू पहुंचे जहां उन्होंने चीन में बैठे उनके विद्रोहियों पर जमकर निशाना साधा। दलाईलामा ने कहा कि वे चीन से आजादी नहीं बल्कि उसके अंदर ही तिब्बत के लिए स्वायत्तता की मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन में बैठे उनके विद्रोही उन्हें अलगाववादी मानते हैं , हमेशा मेरे खिलाफ रहते हैं। उन्होने कहा कि लेकिन अब कुछ चीन में रहने वाले लोग यह समझने लगे हैं कि मैं कोई स्वतंत्रता नहीं मांगता बल्कि चीन के अंदर ही सार्थक स्वायत्तता और तिब्बती बौद्ध संस्कृति का संरक्षण करने की मांग करता हूँ।
लद्दाख की यात्रा के लिए रवाना हुए दलाई लामा
आज सुबह धर्मशाला से जम्मू और लद्दाख की यात्रा के लिए रवाना हुए दलाई लामा ने जम्मू में कहा कि अब कुछ चीनी तिब्बती बौद्ध धर्म के बारे में रुचि दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ चीनी विद्वानों ने महसूस किया है कि तिब्बती बौद्ध धर्म वास्तव में ज्ञान और परंपरा से भरा है और एक बहुत ही वैज्ञानिक धर्म है। गौरतलब है कि पिछले दो वर्षों में धर्मशाला के बाहर दलाई लामा की यह पहली यात्रा है। दलाई लामा जम्मू से लद्दाख के लिए रवाना हो गए हैं।
दलाईलामा को अलगाववादी मानता है चीन
आपको बता दे कि चीन दलाईलामा को अलगाववादी मानता है। चीन ने जब तिब्बत पर हमला किया तो तिब्बत की हार हुई। चीन ने कई बार तिब्बती धर्मगुरु को पकड़ने की कोशिश की लेकिन दलाई लामा किसी तरीके से जान बचाकर भारत आ गए थे। तब की भारत सरकार के प्रधानमंत्री ने दलाई लामा को भारत में शरण दी थी। जिसके बाद हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बती लोगों ने शरण ले ली थी और आज दिन तक धर्मशाला से तिब्बत की सरकार चलती है। 1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल सम्मान भी मिला था। भारत ने दलाईलामा को शरण दी इसलिए चीन भारत से भी चिढ़ता है। इसी का बदला लेने के लिए चीन ने भारत पर 1962 में हमला किया था।