जम्मू & कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि कश्मीर मामलों पर केंद्र की ओर से नियुक्त विशेष प्रतिनिधि दिनेश्वर शर्मा की कोशिशें तभी आगे बढ़ सकती हैं जब शर्मा की अंतिम रिपोर्ट चर्चा की खातिर संसद के दोनों सदनों में रखी जाए।
फिर से नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष चुने गए फारूक ने इस बात पर जोर दिया कि नई दिल्ली को भी स्पष्ट करने की जरूरत है कि कश्मीर पर बातचीत के लिए शर्मा को नियुक्त कर वह क्या हासिल करना चाहती है। फारूक ने कहा कि सथा के गलियारों से उभर रही अलग-अलग आवाजों ने उन्हें जीरो बना डाला है जबकि उन्होंने अब तक बातचीत शुरू भी नहीं की है। 80 साल के फारूक ने इस बात पर जोर दिया कि वह कभी बातचीत के खिलाफ नहीं रहे हैं, बल्कि केंद्र के कदम पर स्पष्टता की कमी से स्तब्ध हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके (शर्मा के) घाटी दौरे से पहले ही प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री (जितेंद्र सिंह), जिन्होंने कहा कि शर्मा वार्ताकार नहीं हैं, सहित नई दिल्ली से अलग-अलग आवाजें उठ रही हैं। उन्होंने कहा कि शर्मा को क्या जिम्मेदारी देकर भेजी गई है यह कश्मीर में किसी को साफ-साफ पता नहीं है।
लोकसभा सांसद फारूक ने बताया, लिहाजा हम भ्रम की स्थिति में हैं कि वह क्या हैं और उनका एजेंडा क्या होने वाला है।
यह पूछे जाने पर कि पिछले हफ्ते कश्मीर के चार दिन के दौरे पर आए शर्मा से उन्होंने मुलाकात क्यों नहीं की, इस पर फारूक ने कहा, मैंने सोचा कि इसका तब तक कोई फायदा नहीं है जब तक दिल्ली साफ न कर दे कि उनके पास कुछ अधिकार हैं और वह अंतिम में जो भी सिफारिश करेंगे उसे संसद में पेश किया जाएगा। उन्होंने पहले के ऐसे कदमों का भी जिक्र किया।
फारूक ने कहा कि अतीत ने दिखाया है कि ऐसी कोई कोशिश ईमानदार नहीं रही। दिलीप पडगांवकर और उनकी टीम, राधा कुमार एवं एम एम अंसारी की ओर से तैयार रिपोर्ट के बारे में कोई बात करता है ?
कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने 2010 में कश्मीर पर वार्ता के लिए तीन सदस्यों वाली टीम गठित की थी। इस टीम ने 2012 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें राज्य के लिए अर्थपूर्ण स्वायथता की सिफारिश की थी।
उन्होंने कहा कि अब तक उस रिपोर्ट का कोई अता-पता नहीं है। उस पर गृह मंत्रालय में धूल जमा हो रही है। बेहतर होता कि उसे संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया होता। फारूक ने शर्मा के मिशन की सफलता पर भी संदेह जारी किया।
उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर मसले के हल के लिए की जाने वाली किसी भी कोशिश में पाकिस्तान को शामिल करना होगा।
फारूक ने कहा कि जब मैं कश्मीर मसले के बारे में बात करता हूं, तो मेरा मतलब पूरे जम्मू, कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र से होता है। यह सिर्फ विकास से जुड़ मसला नहीं है बल्कि राजनीतिक मुद्दा है और इस राजनीतिक मुद्दे में पाकिस्तान भी शामिल है, क्योंकि इस राज्य का एक हिस्सा उसके पास है। उन्होंने कहा कि जब तक पाकिस्तान को साथ नहीं लिया जाएगा, तब तक हम दिल्ली के साथ चाहे जो फैसला कर लें, उसका कोई वजन नहीं होगा।