कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद ने अपनी नई पार्टी का ऐलान कर दिया है। उन्होंने ‘डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी’ के नाम से नया राजनीतिक दल बनाया है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी का झंडा भी जारी किया। उन्होंने बीते महीने ही कांग्रेस से अपने पांच दशक पुराने रिश्तों को खत्म करते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
जम्मू में प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान करते हुए आजाद ने कहा कि उनकी पार्टी का नाम ‘डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी’ है। डेमोक्रेसी डेमोक्रेटिक के लिए है कि पूरी स्वतंत्र होगी। जिसका मैंने उल्लेख किया कि अपनी सोच होगी। ये किसी भी पार्टी या नेता से प्रभावित नहीं होगी और आज़ाद रहेगी।
आजाद पार्टी के झंडे में मौजूद रंगों पर कहा कि पीला रंग रचनात्मकता और विविधता में एकता को इंगित करता है, सफेद शांति को इंगित करता है और नीला स्वतंत्रता, खुली जगह, कल्पना और समुद्र की गहराई से आकाश की ऊंचाइयों तक की सीमा को इंगित करता है।
उन्होंने कहा कि पार्टी की विचारधारा उनके नाम की तरह होगी और इसमें सभी धर्मनिरपेक्ष लोग शामिल हो सकते हैं। वह पार्टी का एजेंडा भी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। इसमें जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना, भूमि व नौकरियों के अधिकार स्थानीय लोगों के लिए सुरक्षित करने के लिए संघर्ष जारी रखना आदि शामिल है।
कैसा आजाद का सफर?
आपको बता दें कि पद्मभूषण से सम्मानित आजाद ने 26 अगस्त को कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। 1973 में डोडा जिले के भलेसा ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में राजनीति की शुरुआत करने वाले आजाद को उनकी सक्रियता और शैली को देखते हुए युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना। 1980 में उन्होंने महाराष्ट्र से अपना पहला संसदीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
1982 में उन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली दूसरी यूपीए सरकार में आजाद ने देश के स्वास्थ्य मंत्री का पदभार संभाला था। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का विस्तार किया। आजाद ने अन्य कई महत्वपूर्ण मंत्रालय भी संभाले हैं। नरसिंह राव की सरकार में संसदीय कार्य और नागरिक उड्डयन मंत्री भी रहे।
2005 में उनको वो सुनहरा अवसर भी मिला जब उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री जम्मू-कश्मीर की सेवा की। आजाद के जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। इसके परिणाम स्वरूप कांग्रेस प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी थी। 2008 में अमरनाथ भूमि आंदोलन के चलते उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था।