शोपियां में सेना की गोलीबारी में दो लोगों की मौत के मामले में मंगलवार को नया मोड़ सामने आया है। सूत्रों की मानें तो इस मामले में सेना कोई कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी नहीं कराने जा रही है। मेजर फायरिंग वाली जगह पर नहीं थे, बल्कि करीब 200 मीटर की दूरी पर थे। आर्मी के काफिले पर करीब 250 लोगों ने पत्थरबाजी की थी। भीड़ लगातार उग्र होती जा रही थी, अपनी हिफाजत के लिए आर्मी पर्सनल्स को फायरिंग करनी पड़ी।
सेना का मानना है कि भीड़ का शिकार बनने से बचने के लिए आत्मरक्षा और राष्ट्रीय संपत्ति की सुरक्षा में सेना के दस्ते का फायरिंग करना सही फैसला था। गौरतलब है कि इस मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सेना के खिलाफ मर्डर की धाराओं में एफआईआर दर्ज की है। हालांकि पुलिस को सैन्यकर्मियों के खिलाफ अभियोग चलाने के लिए केंद्र सरकार की इजाजत की दरकार होगी। इसकी वजह ये है कि कश्मीर में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (अफ्सपा) लगा हुआ है, जिससे सुरक्षाबलों को वहां विशेष अधिकार मिले हुए हैं।
जानकारी के मुताबिक 27 जनवरी को तीन क्विक रिएक्शन टीमों समेत सेना की बीस गाड़ियों का काफिला शोपियां में बालापुरा से घनपुरा की ओर जा रहा था तभी करीब 250 लोगों ने घेरकर पत्थरबाजी शुरू कर दी थी। एक JCO हालात का जायजा लेने नीचे उतरा, लेकिन पत्थर लगने से वो गिर पड़ा। इसके बाद सेना के जवानों ने पत्थरबाजों को चेतावनी दी। भीड़ लगातार उग्र होती जा रही थी, अपनी हिफाजत के लिए आर्मी पर्सनल्स ने हवा में फायरिंग की।” – ”जब भीड़ बहुत करीब आ गई और पत्थरबाजी करती रही, तब आर्मी ने गोलियां चलाईं।
जिस जगह फायरिंग हुई, मेजर वहां से 200 मीटर की दूरी पर थे।” बता दें कि रविवार को श्रीनगर में एक आर्मी स्पोक्सपर्सन ने कहा था कि सेना ने तब गोली चलाई, जब भीड़ ने उनके एक जूनियर कमीशंड अफसर को मारने की कोशिश की और उसके हथियार छीन लिए। आपको ये बता दें कि साल 2001 से अब तक जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सेना के खिलाफ अभियोग चलाने की कुल 51 बार इजाजत मांगी है, लेकिन सैंतालीस बार केंद्र ने उसको यह इजाजत देने से इनकार कर दिया। बचे हुए तीन मामले अभी विचाराधीन हैं।
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