कश्मीर घाटी में अलगाववादी नेताओं ने मंगलवार को कहा कि जम्मू & कश्मीर के लिए केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार से वे लोग किसी भी प्रकार की वार्ता नहीं करेंगे। अलगाववादी नेताओं वार्ताकार की नियुक्ति को मोदी सरकार द्वारा एक साजिश बताया है।
आपको बता दे की आज आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के कटटरपंथी गुट के चेयरमैन सईद अली शाह गिलानी, उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज मौलवी उमर फारूक और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन मोहम्मद यासीन मलिक जिनके साझा नेतृृत्व में कश्मीरी अलगाववादी संगठनों ने जायंट रजिस्टेंस लीडरशिप (जेआरएल) मंच बना रखा है, और साझा बयान जारी कर यह जानकारी दी।
अलगाववादी नेताओं ने साझा बयान में कहा कि इस तथाकथित वार्ता प्रक्रिया का हिस्सा बनना किसी भी कश्मीरी के लिए एक निर्रथक पहल होगी क्योंकि भारत सरकार स्वतंत्रता से प्यार करने वाले कश्मीरी लोगों की आकांक्षाओं को कुचलने के सैन्य प्रयास में विफल रहने पर बातचीत करने की नई रणनीति अपना रही है।
अलगाववादी नेताओं ने पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम द्वारा कश्मीर में स्वायत्तता बहाली के सुझाव को मोदी सरकार द्वारा सिरे से खारिज किए जाने का हवाला देते हुए कहा कि अगर भारत सरकार अपने ही एक प्रमुख राजनीतिक दल के नेता और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री के सुझाव के मुताबिक जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के दायरे में स्वायत्तता बहाली को भारतीय सैनिकों के खून के साथ विश्वासघात करार देती है तो फिर आप कैसे कह सकते हैं कि खुद मुख्तारी और आजादी के लिए लड़ रहे कश्मीरियों की राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नई दिल्ली राजी है।
साझा बयान में ये भी कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में संघर्ष समाप्त करने के लिए हमारे सिद्धांतों के तहत हम हमेशा गंभीर और फलदायी वार्ता को बढ़ावा और समर्थन देते हैं।
वही हुर्रियत नेताओं ने कहा हम हमेशा ही बातचीत के पक्षधर रहे हैं। लेकिन बातचीत त्रिपक्षीय हो जिसमें कश्मीरियों केा बराबरी के आधार पर शामिल करते हुए भारत को पहले कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मानना होगा और कश्मीरियों की राजनीतिक आकांक्षाओं के अनुरुप कश्मीर मसले को हल करने का इरादा होना चाहिए।