पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को बुधवार और बृहस्पतिवार की मध्यरात्रि को यहां सुपुर्द-ए-खाक किया गया। कश्मीर घाटी में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं बंद किए जाने के साथ ही कड़ी सुरक्षा और पाबंदियों के बीच उनका अंतिम संस्कार किया गया।
अधिकारियों के अनुसार गिलानी (91) को उनके आवास के पास एक मस्जिद में स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया। इससे पहले अधिकारियों ने पार्थिव शरीर को अपने कब्जे में ले लिया। समझा जाता है कि शुरू में उनका परिवार रात में अंतिम संस्कार के लिए सहमत हो गया था। लेकिन बाद में परिवार ने उन्हें ईदगाह में दफनाए जाने पर जोर देना शुरू कर दिया।
इससे पहले गिलानी, जिन्हें कश्मीर में स्थिति में सुधार के लिए किसी भी शांति के कदम में बाधा के तौर पर देखा जाता था, ने स्थानीय मस्जिद में दफनाए जाने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन 2020 में जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया तो उन्होंने ईदगाह में दफनाए जाने की इच्छा जतायी थी।
अधिकारियों ने कहा कि बुधवार रात करीब 11 बजे उनका निधन होने के बाद परिवार को रात में दफनाने के महत्व के बारे में बताया गया क्योंकि राष्ट्र विरोधी तत्व कश्मीर घाटी में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते थे।
पुलिस महानिरीक्षक (कश्मीर रेंज) विजय कुमार गिलानी के आवास पर गए और उन्होंने उनके दो पुत्रों नईम और नसीम के साथ बातचीत की। उसके बाद पार्थिव शरीर को पास के कब्रिस्तान में ले जाने का निर्णय लिया गया।
गिलानी को उनके आवास से सटे कब्रिस्तान में दफनाया गया और इस दौरान अधिकारियों के साथ कुछ रिश्तेदार और उनके करीबी सहयोगी मौजूद थे।
उनके पुत्र नईम ने कहा कि अधिकारियों ने उनके आवास पर पार्थिव शरीर को अपने नियंत्रण में ले लिया, हालांकि परिवार ईदगाह में उन्हें दफनाना चाहता था। उन्होंने कहा, ‘हम आज (बृहस्पतिपार) सुबह करीब 11 बजे गए और कब्र पर फातिया (मृतकों के लिए प्रार्थना) पढ़ा।’’
अलगाववादी नेता के आवास पर हंगामे की खबरों का खंडन करते हुए कुमार ने कहा कि ‘कुछ निहित स्वार्थों ने पुलिस द्वारा गिलानी को जबरन दफनाने के बारे में निराधार अफवाह फैलाने की कोशिश की। ऐसी निराधार खबरें हिंसा भड़काने के लिए दुष्प्रचार का हिस्सा हैं और पुलिस ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है’।
कुमार ने कहा, ‘वास्तव में, पुलिस ने शव को घर से कब्रिस्तान तक लाने में मदद की क्योंकि उपद्रवी तत्वों द्वारा स्थिति का अनुचित फायदा उठाने की आशंका थी। मृतक के रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार कार्यक्रम में भाग लिया।’
इस बीच, लोगों को एकत्र होने से रोकने के लिए पूरी घाटी में सख्त प्रतिबंध लगाए गए थे और किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई थी।
जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि सुरक्षाबलों की तैनाती की गयी थी और स्थिति की निगरानी की गयी।घाटी के किसी भी हिस्से से किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं है।
वर्ष 1990 में, हुर्रियत कांफ्रेंस (उदारवादी) के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक के पिता मीरवाइज फारूक के अंतिम संस्कार के दौरान आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों पर गोलियां चलाई थीं और दोनों ओर से हुयी गोलीबारी में 60 लोग मारे गए थे।
अफवाहों तथा फर्जी खबरों को फैलने से रोकने के लिए एहतियातन बीएसएनएल की पोस्ट पेड सेवा को छोड़कर अन्य मोबाइल फोन सेवाएं और इंटरनेट बंद कर दिया गया था।