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शाह के गृह मंत्री बनने से अनुच्छेद 370 पर उम्मीदें बढ़ीं

लगभग दो महीने पहले जब से अमित शाह गृह मंत्री बने हैं, तब से जम्मू एवं कश्मीर पर केंद्र की नीतियां और कठोर हो गई हैं जिससे उम्मीदें और अटकलें लगाई जा रही हैं

लगभग दो महीने पहले जब से अमित शाह गृह मंत्री बने हैं, तब से जम्मू एवं कश्मीर पर केंद्र की नीतियां और कठोर हो गई हैं जिससे उम्मीदें और अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्य को ‘विशेष’ दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए आंदोलन आगे बढ़ाया जाएगा। 
अधिकारियों ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री इस अनुच्छेद को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह कानून राज्य के नियम बनाने में भी संसद की शक्तियों को सीमित करता है। 
इस मुद्दे पर सरकार द्वारा कठोर रुख अपनाने का संकेत हाल ही में संसद में तब मिला जब शाह ने बार-बार जोर देकर कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी है ना कि स्थायी। 
उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि अगर इस अनुच्छेद को बहुत पहले जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में ही निरस्त कर दिया जाता तो जम्मू एवं कश्मीर को ये दिन ना देखने पड़ते। 
विशेष प्रावधान के कारम जम्मू एवं कश्मीर का स्थायी निवास प्रमाण पत्र वाले व्यक्ति ही राज्य में जमीन खरीद सकते हैं। 
अनुच्छेद 370 खत्म करने का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए दशकों से प्रमुख मुद्दा है, लेकिन ऐसा लगता है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में, विशेष रूप से शाह के गृह विभाग संभालने पर इसे लेकर और ज्यादा गंभीरता आई है। 
जहां ज्यादातर राजनीतिक दल और कश्मीर घाटी में समाज के अन्य धड़े अनुच्छेद 370 को खत्म करने के किसी भी कदम का सख्त विरोध करते आए हैं, वहीं राज्य के जम्मू क्षेत्र में इस अनुच्छेद को खत्म करने को लेकर खासा उत्साह है। राज्य के अखंड भारत में पूरी तरह एकीकरण नहीं होने का कारण इस अनुच्छेद को माना जाता है। 
इस मुद्दे को और हवा तब लगी जब इसी महीने सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह अनुच्छेद 370 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक जन हित याचिका पर तत्काल सुनवाई करने पर विचार करेगा। 
अदालत ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर संज्ञान लिया और उसे तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। 
पिछले साल सितंबर में याचिका दायर करने वाले उपाध्याय ने तर्क दिया कि संविधान में शामिल किए जाने के समय विशेष दर्जा अस्थायी था और 26 जनवरी 1957 को अनुच्छेद 370(3) जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा के भंग होने के साथ ही खत्म हो गई। 
याचिका में शीर्ष अदालत से यह भी स्पष्टीकरण मांगा गया है कि जम्मू एवं कश्मीर का पृथक संविधान विभिन्न आधारों पर पक्षपाती तथा असंवैधानिक है। याचिका में इसके अलावा इस पर भी स्पष्टीकरण मांगा गया कि यह संविधान भारत के संविधान के प्रभुत्व को चुनौती देता है तथा यह ‘एक राष्ट्र, एक संविधान, एक राष्ट्रगान और एक राष्ट्र ध्वज’ के वाक्य का विरोध करता है। 
अनुच्छेद 370 पर कड़ा रुख अपनाने के अलावा, शाह ने आतंकवादियों और अलगाववादियों पर कार्रवाई के लिए भी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को निर्देश दे दिए हैं। 
अधिकारियों ने कहा कि गृह मंत्रालय राज्य पुलिस का भी मनोबल बढ़ा रहा है। राज्य पुलिस आतंकवादियों और अलगाववादियों के खिलाफ जंग में सबसे आगे है। पिछले साल जून में पीडीपी-भाजपा की सरकार गिरने के बाद से राज्य में केंद्र का शासन है।

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