कश्मीर घाटी में आतंकवाद, लोगों पर इसका प्रभाव और अशांति के बीच उनका अपनापन जैसे कुछ पहलुओं पर बात करती एक नयी किताब सामने आयी है। संचित गुप्ता की किताब द ट्री विथ ए थाउजैंड ऐपल्स, बचपन के उन तीन दोस्तों के जीवन की दास्तां है जो वैसे तो श्रीनगर में शांति एवं सौहार्द के माहौल में पले बढ़ लेकिन 20 जनवरी 1990 की रात के बाद से हालात बद से बदतर होते गये।
कश्मीर में वर्ष 1990 से 2013 के कालखंड को बयां करती यह किताब अपनी अपनी किस्मत चुनने के लिये मजबूर सफीना मलिक, दीवान भट और बिलाल आहानगर की कहानी कहती है।
नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास में अपने घरों से निर्वासित कश्मीरी पंडितों, दिशाहीन युवा आतंकवादियों, अपने कर्तव्य से बंधे सैन्य अधिकारियों एवं बेकसूर लोगों को रेखांकित किया गया है, जो इन हालात का निशाना बने।
दीवान को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा, सफीना की मां इसका निशाना बनीं और बिलाल को गरीबी एवं डर से भरे जीवन को गले लगाना पड़।
जिस जगह को वे स्वर्ग कहते थे अब वह युद्धभूमि बन गयी है और जब मर्जी के खिलाफ उन्हें अपनी किस्मत का चुनाव करना पड़ तो उनकी दोस्ती को भी इससे जूझना पड़।
20 साल बाद किस्मत उन्हें एक बार फिर मिलाती है और तब वे यह नहीं जानते कि क्या सही है और क्या गलत।
उनके जीवन में कुछ भी सही नहीं चल रहा है। सफीना का भाई तारिक माछिल में सेना की गोली लगने से मारा जाता है और एक आतंकवादी उसके पिता की हत्या कर देता है। बिलाल गरीबी में जी रहा होता है तो दीवान घर छोड़कर मुंबई जा बसता है। वह अपना एक हाथ भी गंवा चुका है।
गुप्ता जिक्र करते हैं कि किस तरह से उनके मन में इस किताब का विचार आया। उन्होंने कहा, वर्ष 2009 में जब मैं कश्मीर गया था तब मैंने 12 साल के एक कश्मीरी मुस्लिम बच्चे को 20 वर्षीय सेना के जवान के साथ कहवा पीते देखा था। तब मैंने आस पास मौजूद नफरत के माहौल के बीच पनपते प्यार को देखा था।
उन्होंने बताया, जिन लोगों से मैं मिला था, जिनसे मैंने उनकी कहानी सुनी थी, उसे मैं कहानी की शक्ल में बताना चाहता था। उन्होंने कहा कि यह किताब संस्कृति, अपनेपन, प्रतिशोध और पश्चाताप की सार्वभौमिक कहानी है।
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