आतंकवादी गतिविधियों में कथित रूप से संलिप्तता पाए जाने पर सरकार ने बुधवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) एवं उसके सहयोगी संगठनों पर पांच सालों का बैन लगा दिया। गत 22 सितंबर को एनआईए (NIA), ईडी (ED) एवं अन्य जांच एजेंसियों ने देश भर में 15 राज्यों में सगंठन के ठिकानों एवं दफ्तरों पर छापे मारे। सूत्रों के मुताबिक छापे की इस कार्रवाई में पीएफआई के ठिकानों से आपत्तिजनक दस्तावेज एवं इलेक्ट्रानिक उपकरण बरामद हुए। बताया जा रहा है कि इन साक्ष्यों को खंगालने के बाद जांच एजेंसियों ने पीएफआई पर बैन लगाने की अनुशंसा की जिसे गृह मंत्रालय ने मान लिया। बैन लगने के बाद केरल में 2007 में अस्तित्व पीएफआई एक बार फिर सुर्खियों में है।
2010 में पहली बार चर्चा में आया पीएफआई
साल 2010 में पीएफआई पहली बार देश भर में चर्चा का विषय बना। केरल में ईशनिंदा के आरोप में उसके सदस्यों ने प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काट दिया। उसने जोसेफ पर पैगंबर मोहम्मद की ईशनिंदा करने का आरोप लगाया। जोसेफ छात्रों के लिए एक पेपर तैयार किया था। इस पेपर में पैगंबर मोहम्मद का जिक्र आया था जो इस संगठन को पसंद नहीं आया। अब पीएफआई पर बैन लगने के बाद प्रोफेसर जोसेफ ने प्रतिक्रिया दी है। जोसेफ ने कहा कि वह इस बारे में अभी कोई बयान नहीं देंगे। इस बारे में सामाजिक एवं नेताओं को प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
बैन लगने पर प्रोफेसर ने दी प्रतिक्रिया
उन्होंने कहा, ‘पीएफआई हिंसा के पीड़ित के रूप में, मैं उस पर लगे बैन के बारे में बात नहीं करना चाहता लेकिन एक नागरिक के रूप में मैं अपनी राय रख सकता हूं लेकिन इसके लिए आज का दिन सही नहीं है। हो सकता है कि किसी और दिन मैं अपने विचार रखूं। लोगों को मेरी निजता का सम्मान करने की जरूरत है। इस पर अभी मैंने कुछ न बोलने का फैसला किया है। पीएफआई पर बैन लगने के बारे में टिप्पणी करने के लिए सामाजिक एवं राजनीतिक नेता हैं। उन्हें बयान देने दीजिए। मैं इस बारे में कुछ कहना नहीं चाहता क्योंकि मेरी अंतरात्मा इस मामले में मुझे बोलने की इजाजत नहीं दे रही।’
केरल पुलिस के बाद एनआईए ने की जांच
बाद में एनआईए ने प्रोफेसर (Professor TJ Joseph)के हाथ काटने वाले मामले की जांच शुरू की। इस मामले में जांच एजेंसी ने कुल 54 लोगों की पहचान की। एजेंसी ने अपनी दायर चार्जशीट में इस अपराध के लिए पीएफआई को जिम्मेदार ठहराया। कोर्ट ने इस मामले में 13 लोगों को दोषी पाया। इनमें से 10 लोग अपराध में प्रत्यक्ष रूप से संलिप्त थे। इन लोगों पर यूएपीए लगा। अदालत ने इस मामले में 18 अन्य लोगों को रिहा कर दिया। कुछ आरोपी पुलिस की पकड़ से दूर रहे। एक आरोपी ने साल 2018 में पुलिस के आगे समर्पण कर दिया।