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150 साल पुरानी छोटी रेल लाइन हुई बंद, बाबासाहेब आम्बेडकर की जन्मस्थली ‘महू से खंडवा’ तक चलती थी रेल

पश्चिमी मध्य प्रदेश में रेलवे की विरासत से जुड़ी करीब 150 साल पुरानी छोटी रेल लाइन पर ट्रेनों की आवाजाही इसके गेज में बदलाव की जारी परियोजना के चलते मंगलवार से अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी गई।

पश्चिमी मध्य प्रदेश में रेलवे की विरासत से जुड़ी करीब 150 साल पुरानी छोटी रेल लाइन पर ट्रेनों की आवाजाही इसके गेज में बदलाव की जारी परियोजना के चलते मंगलवार से अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर से संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आम्बेडकर की जन्मस्थली महू को जोड़ने वाली यात्री ट्रेन के मंजिल पर पहुंचते ही यह रेल लाइन इतिहास के पन्नों में समा गई। चश्मदीदों ने बताया कि ओंकारेश्वर रोड स्टेशन से इस रेलगाड़ी को उसके आखिरी सफर पर रवाना किए जाने से पहले यात्रियों ने ट्रेन के लोको पायलट दौलतराम मीणा और उनके सहयोगियों को माला पहनाई। यात्रियों ने ट्रेन पर मीटर गेज को आखिरी सलाम और छोटी लाइन बहुत याद आओगी जैसे भावुक संदेश भी लिखे।
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आसान और सुविधाजनक जरिया था
इंदौर से करीब 70 किलोमीटर दूर ओंकारेश्वर रोड स्टेशन से ट्रेन में सवार यात्रियों में शामिल मोहम्मद शाहिद ने ‘‘पीटीआई-भाषा’’ से कहा,‘‘इस रेल के आखिरी सफर का गवाह बनने पर हमें काफी दु: ख हो रहा है। महू और इंदौर आने-जाने के लिए यह ट्रेन हमारा आसान और सुविधाजनक जरिया था। अब हमें मजबूरन बस से सफर करना पड़ेगा।’’ पश्चिम रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी खेमराज मीणा ने बताया कि महू से खंडवा के बीच करीब 90 किलोमीटर में फैली छोटी लाइन को बड़ी लाइन में बदले जाने की जारी परियोजना के चलते छोटी लाइन को अनिश्चितकाल के लिए बंद किया गया है।
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अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है
उन्होंने बताया कि इस लाइन पर महू-ओंकारेश्वर रोड-महू यात्री ट्रेन का परिचालन किया जा रहा था, जिसे अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है। गौरतलब है कि महू से खंडवा के बीच की छोटी लाइन के पातालपानी-कालाकुंड खंड को विरासत ट्रैक घोषित किए जाने के बाद रेलवे ने इस पर 25 दिसंबर 2018 से महू-कालाकुंड-महू हैरिटेज ट्रेन चलानी शुरू की थी। मीणा ने बताया कि छोटी लाइन पर रेलों की आवाजाही थमने के बाद यह हैरिटेज ट्रेन भी अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी गई है।
दिसंबर 1874 से रेलों की आवाजाही शुरू हुई थी
रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि तत्कालीन होलकर शासकों ने अपनी राजधानी इंदौर को खंडवा से जोड़ने के लिए छोटी लाइन बिछाने के वास्ते अंग्रेजों को वर्ष 1870 में एक करोड़ रुपये का कर्ज 101 साल के लिए दिया था और सबसे पहले इस लाइन के खंडवा-सनावद खंड पर एक दिसंबर 1874 से रेलों की आवाजाही शुरू हुई थी। उन्होंने बताया कि इंदौर से खंडवा के बीच के सुरम्य पहाड़ी इलाकों के रोमांचकारी मोड़ों और उतार-चढ़ावों से गुजरने वाली यह छोटी लाइन इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना है। अधिकारियों के मुताबिक, बीते वर्षों में इस लाइन का इस्तेमाल उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने में किया जाता रहा है और इस पर जयपुर-पूर्णा मीनाक्षी एक्सप्रेस, अजमेर-खंडवा एक्सप्रेस, जयपुर-काचेगुड़ा मेल जैसी प्रमुख यात्री गाड़ियां चलायी जाती रही हैं।

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