ओडिशा में देबरीगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में एक गांव के 42 परिवारों के करीब 80 लोगों को किसी अन्य स्थान पर बसाया गया है ताकि मनुष्य-पशु के टकराव को कम किया जा सके और साथ ही उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी बेहतर उपलब्ध करायी जा सकें। अधिकारियों ने बताया कि गांववासियों को आरक्षित वन्य क्षेत्र से बाहर किसी स्थान पर बसाया गया है।
हीराकुंड वन्यजीव मंडल वन अधिकारी अंशु दास ने बताया कि बारगढ़ जिले में लंबीपाली गांव के निवासी दयनीय स्थिति में रह रहे थे और उनके पास उचित सड़क संपर्क, पेयजल और स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थी क्योंकि वे रिहायशी बस्तियों से काफी दूर रहते थे।
देबरीगढ़ में वन्यजीवों की घनी आबादी के कारण खेती नहीं कर पाते थे जिससे गांववालों को आजीविका की तलाश में प्रवास करना पड़ता था। यह ग्रामीण बस्ती 1908 में आरक्षित वन्य क्षेत्र में स्थापित की गयी थी। दास ने बताया कि वन्यजीव मंडल ने उन्हें स्थानांतरण और मुआवजे के लिए सरकार की नीति के बारे में जागरूक करने के वास्ते अगस्त में कई कार्यक्रम चलाए।
उन्होंने कहा, ‘‘गांव वालों ने हाल में एक ग्राम सभा में इच्छा जतायी और इसके बाद सितंबर में एक सर्वेक्षण किया गया। 42 परिवारों के करीब 80 लोगों को स्थानांतरण और 15 लाख रुपये के पैकेज का लाभ उठाने के योग्य पाया गया।’’ अधिकारी ने बताया कि वन विभाग और जिला प्रशासन की निगरानी में ग्रामीण दूसरे स्थान पर एक कॉलोनी बसाने की प्रक्रिया में शामिल रहे और 17 दिसंबर से वहां रहने लग गए।
उन्होंने कहा, ‘‘वे उन्हें आवंटित की गयी जमीन पर पक्का घर बनाएंगे और प्रशासन की मदद से एक साल के भीतर उन्हें सभी सुविधाएं दी जाएगी।’’ संबलपुर और बारगढ़ जिलों में फैला यह अभयारण्य हीराकुंड जलाशय के किनारे स्थित है। अभयारण्य में तीन और बस्तियों में रह रहे लोगों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया चल रही है।
एक अन्य वन अधिकारी ने कहा, ‘‘ये मानव बस्तियां जंगल में बहुत अंदर स्थित हैं और वहां रह रहे लोग सभी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं। गांव वालों के स्थानांतरण से मनुष्य-पशु के बीच टकराव कम होगा और वन्यजीवों का निवास स्थान भी बहाल होगा।’’