एल्गार परिषद के माओवाद से संबंध मामले में आरोपी सुरेन्द्र गाडलिंग ने कोरेगांव भीमा हिंसा मामले की जांच कर रहे आयोग को शुक्रवार को बताया कि वह बयान नहीं देना चाहते क्योंकि इससे निचली अदालत में उनके मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पुणे पुलिस ने गैर कानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत गाडलिंग को गिरफ्तार किया था। इससे पहले उन्होंने खुद कहा था कि वह न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जय नारायण पटेल की अध्यक्षता वाले आयोग के समक्ष बयान देना चाहते है।
उन्होंने अपने आवेदन में कहा था कि वह कुछ तथ्यों को सामने लाना चाहते है। उन्हें कड़ी पुलिस सुरक्षा में शुक्रवार को अदालत के समक्ष पेश किया गया था। हालांकि उनके वकील ने एक आवेदन में कहा कि वह कुछ परिस्थितियों के कारण आयोग के समक्ष बयान देने के अपने अनुरोध को वापस ले रहे है।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा कि गाडलिंग… ने कहा है कि वह बयान नहीं देना चाहते क्योंकि इससे निचली अदालत में, जहां वह गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं, उनके मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। साथ ही उन्होंने को वापस यरवदा केंद्रीय जेल वापस भेजने का आदेश दिया। गाडलिंग इसी जेल में निरुद्ध हैं।
एल्गार परिषद मामले में एक अन्य आरोपी सुधीर धावले ने भी एक आवेदन दाखिल किया था और आयोग के समक्ष बयान देने का आग्रह किया था। आयोग उनसे शनिवार को पूछताछ करेगा। धावले एल्गार परिषद के आयोजकों में थे। भीमा कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने के अवसर पर एक जनवरी, 2018 को जिले के कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के निकट कार्यक्रम का आयोजन किया गया था और इस दौरान हुई हिंसा की आयोग जांच कर रहा है।
पुणे पुलिस का दावा है कि एल्गार परिषद में भड़काऊ भाषण दिये गये। पुलिस ने यह भी आरोप लगाया है कि परिषद को माओवादियों का समर्थन भी हासिल था।