सीआईसी ने केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा को पिछले साल असम में हुई कथित फर्जी मुठभेड़ से संबंधित दस्तावेज पेश करने का “अंतिम मौका” दिया है। इसके बाद उनके खिलाफ सूचना के प्रवाह को “बाधित” करने के लिए दंडात्मक कार्यवाही शुरू किए जाने की चेतावनी दी गई है। इस फर्जी मुठभेड़ की खबर सीआरपीएफ के तत्कालीन महानिरीक्षक रजनीश राय ने दी थी।
केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा मामले के अध्ययन के लिए दस्तावेज नहीं प्रस्तुत करने के गृह मंत्रालय के रुख पर क्रोधित होते हुए आयोग ने कहा कि चूंकि मामले में फैसला “बेशक” उच्चतम स्तर पर लिया गया है, इसलिए गृह मंत्रालय के सचिव को जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) नामित किया गया।
आदेश में कहा गया, “ गृह मंत्रालय को मामले से संबंधित दस्तावेज पेश करने का एक अंतिम मौका दिया जा रहा है। केंद्रीय गृह सचिव को व्यक्तिगत तौर पर या अपने अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से 19 दिसंबर, 2018 को आयोग के समक्ष संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे और ऐसा नहीं होने की सूरत में एकतरफा फैसला सुनाया जाएगा।” साथ ही आयोग ने कहा कि अगर दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए तो उनके खिलाफ “आयोग के न्यायिक निर्णय की प्रक्रिया और सूचना के प्रवाह को बाधित करने” के लिए दंडात्मक कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
आदेश में कहा गया, “आरटीआई कानून के तहत, किसी भी बहाने से इस आयोग से सूचनाओं को रोक कर नहीं रखा जा सकता।” इसमें कहा गया कि सीआईसी के पास वैधानिक शक्तियां हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को मान्यता दी है। आदेश में कहा गया, “आयोग के समक्ष दस्तावेज पेश करने में गृह मंत्रालय के असामान्य प्रतिरोध का समर्थन नहीं किया जा सकता और आयोग इसे आरटीआई व्यवस्था पर प्रत्यक्ष हमला मानता है।”
इसमें कहा गया कि आयोग यह स्पष्ट करता है कि मुठभेड़ में या न्यायेतर हत्या और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप दो अलग-अलग बाते हैं। यह मामला एक आरटीआई आवेदन से जुड़ा हुआ है जिसमें सीआरपीएफ के तत्कालीन महानिरीक्षक रजनीश राय द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट की प्रति मांगी गई।
राय ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि सेना, असम पुलिस, सीआरपीएफ और जंगल में युद्ध करने वाली उसकी इकाई कोबरा और सशस्त्र सीमा बल ने चिरांग जिले के सिमलागुरी इलाके में 29, 30 मार्च 2017 को इस मुठभेड़ को अंजाम दिया था और दो लोगों को मार गिराया था जिन्हें वे प्रतिबंधित समूह एनडीबीएफ (एस) के उग्रवादी बताते हैं। सीआरपीएफ ने यह कहते हुए इसकी प्रति देने से इंकार कर दिया था कि वह आरटीआई कानून के तहत छूट प्राप्त संगठन है। हालांकि बाद में उसने कहा कि रिपोर्ट गृह मंत्रालय के पास है।