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अयोध्या निर्णय न्यायपालिका के कठिन परिश्रम, गुणवत्तापूर्ण फैसले का उदाहरण : न्यायमूर्ति शाह

भारतीय न्यायपालिका द्वारा दिए गए गुणवत्तापूर्ण फैसले का एक उदाहरण है और इसे मुमकिन करने में की गई कड़ी मेहनत की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम आर शाह ने रविवार को कहा कि अयोध्या मामले में निर्णय भारतीय न्यायपालिका द्वारा दिए गए गुणवत्तापूर्ण फैसले का एक उदाहरण है और इसे मुमकिन करने में की गई कड़ी मेहनत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 
न्यायिक विलंब और न्यायिक मामले से न्यायाधीशों के अलग होने के विषय पर निरमा विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि न्यायाधीशों को किसी मामले से तब तक अलग नहीं होना चाहिए जब तक कि इससे उनका वित्तीय हित संबंधी कोई मामला संबद्ध न हो। 
उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय न्यायपालिका के समक्ष सबसे महत्वपूर्ण समस्या व्यापक स्तर पर लंबित मामलों और विलंब की है। हालांकि, दिए गए निर्णयों की गुणवत्ता और कड़ी मेहनत की चौतरफा सराहना होती है। हालिया उदाहरण राम-जन्मभूमि (अयोध्या) फैसले का है।’’ 
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अयोध्या (मामले का) फैसला देने वाले शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों की कठित मेहनत के बारे में आप अंदाजा नहीं लगा सकते। मामले की सुनवाई 40 दिन तक करना और इतना महत्वपूर्ण मामला, फिर फैसला देते हुए पक्षों के बीच संतुलन बनाना बहुत कठिन चीज है। इसके बावजूद, हम न्याय होता हुआ देखने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हैं।’’ 
उन्होंने कहा, ‘‘जल्द यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि न्याय में देरी न हो और आज विद्यमान परिस्थिति का शीघ्र निदान हो।’’ न्यायाधीश ने कहा कि बढ़ती आबादी, अदालतों और न्यायाधीशों की कमी, कमजोर आधारभूत संरचना और कंप्यूटरीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की धीमी रफ्तार लंबित मामलों के लिए कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं।
 
सुनवाई से न्यायाधीशों के अलग होने के मुद्दे पर शाह ने कहा कि धन संबंधी निजी हितों के आधार को छोड़कर इसकी अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘जब तक कोई वाजिब दमदार कारण न हो, न्यायाधीशों को (मामले से) अलग होने की मांग नहीं करनी चाहिए वरना इससे आजाद न्यायिक तंत्र के बहुत सारे लाभ नष्ट हो जाएंगे।’

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