भीमा कोरेगांव हिंसा 2018 मामले में जांच कर रहे आयोग ने बुधवार को राकांपा प्रमुख शरद पवार को गवाह के तौर पर पेश होने के लिए सम्मन भेजा है। पैनल की ओर से भेजे गए समन में पवार को 4 अप्रैल को पेश होने का निर्देश दिया गया है। इस दौरान पैनल हिंसा से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी पूछताछ कर सकती है।
पवार को मुंबई में आयोग के समक्ष पेश होना पड़ेगा क्योंकि आयोग ने कोरोना वायरस के मद्देनजर सुनवाई वहां स्थानांतरित कर दी है। मार्च के अंतिम सप्ताह तक होने वाली सुनवाई अब 30 मार्च से चार अप्रैल के बीच होगी। पैनल के वकील आशीष सतपुते ने बताया कि आयोग ने तत्कालीन एसपी (पुणे ग्रामीण) सुवेज हक, तत्कालीन अतिरिक्त एसपी संदीप पाखले, तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त, पुणे रवींद्र सेंगांवकर और तत्कालीन जिलाधीश सौरभ राव को भी सम्मन किया है।
इस बीच राकांपा प्रवक्ता और महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने मुंबई में कहा कि पवार संसद का सत्र समाप्त होने के बाद चार अप्रैल को आयोग के समक्ष पेश होंगे। मलिक ने पत्रकारों से कहा, ‘‘आयोग ने पवार को सुविधाजनक तारीख पर उसके समक्ष पेश होने के लिए कहा था। इस तरह वह चार अप्रैल को आयोग के समक्ष पेश होंगे।’’
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राकांपा प्रमुख बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे एन पटेल की अध्यक्षता वाले आयोग के समक्ष आठ अक्टूबर 2018 को हलफनामा दायर किया था। इस साल फरवरी में सामाजिक समूह विवेक विचार मंच के सदस्य सागर शिंदे ने आयोग के समक्ष अर्जी दायर कर 2018 की जातीय हिंसा के बारे में मीडिया में पवार द्वारा दिए गए कुछ बयानों को लेकर उन्हें सम्मन भेजे जाने का अनुरोध किया था।
अपनी याचिका में शिंदे ने 18 फरवरी को पवार के संवाददाता सम्मेलन का हवाला दिया। अपने हलफनामे में पवार ने कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तत्कालीन बीजेपी सरकार और कानून एवं प्रवर्तन एजेंसियां कोरेगांव भीमा और उसके आसपास के इलाकों में रह रहे आम आदमी के हितों की रक्षा करने में नाकाम रही। आयोग ने पिछले महीने शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस सरकार को अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए इस साल आठ अप्रैल तक की अंतिम समयसीमा दी थी।
गौरतलब है कि कोरेगांव-भीमा युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के दौरान एक जनवरी 2008 को कोरेगांव भीमा और आसपास के इलाकों में हिंसा भड़क उठी थी। पुणे पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को ‘एल्गार परिषद सम्मेलन’ में दिए ‘‘उकसावे’’ वाले भाषणों से हिंसा भड़की। पुलिस के अनुसार, एल्गार परिषद सम्मेलन के आयोजकों के माओवादियों से संपर्क थे।