मणिपुर में भाजपा नीत एन बीरेन सिंह सरकार ने सोमवार को राज्य विधानसभा में 16 के मुकाबले 28 वोट से विश्वास मत जीत लिया। वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस के आठ विधायकों ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करते हुए सदन की कार्यवाही में भाग नहीं लिया।
सिंह के विश्वास प्रस्ताव को विधानसभा में एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान लंबी चर्चा के बाद मत-विभाजन के लिए रखा गया जिसमें सरकार सफल रही। मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 24 विधायक हैं। तीन विधायकों के इस्तीफे और दल-बदल कानून के तहत चार विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के बाद अब सदन में सदस्यों की संख्या 53 है।
वर्तमान प्रभावी संख्या में विधानसभा अध्यक्ष वाई खेमचंद का वोट भी शामिल हैं जोकि दो दलों को बराबर वोट मिलने की स्थिति में डाला जा सकता था। सदन में गठबंधन सरकार के पास विधानसभा अध्यक्ष समेत 29 सदस्यों का संख्याबल था जबकि विपक्षी दल कांग्रेस के 24 विधायक थे, जिनमें से आठ ने कार्यवाही में हिस्सा नहीं लिया।
बीरेन सिंह की जीत लगभग तय मानी जा रही थी लेकिन कांग्रेस के आठ विधायकों के नदारद रहने से उनका रास्ता और आसान हो गया। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान के दौरान आठ विधायक अनुपस्थित रहे। हालांकि, उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी अथवा नहीं?
इससे पहले, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एस टिकेंद्र सिंह ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि सरकार 30 से ज्यादा सदस्यों का समर्थन हासिल करके विश्वास मत जीतेगी। कांग्रेस ने 28 जुलाई को भाजपा नीत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। कांग्रेस के विधायक केशम मेघचंद्र सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की ओर से पेश विश्वास प्रस्ताव पर सदन में चर्चा सूचीबद्ध है।
उन्होंने कहा, ‘‘सदन की कार्यवाही के नियम में यह स्पष्ट है कि अगर एक ही मुद्दे को लेकर दो अलग-अलग प्रस्ताव पेश किए गए हों यानी एक विपक्ष के द्वारा और एक सरकार के द्वारा तो प्राथमिकता सरकार की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव को दी जानी चाहिए। इसलिए कांग्रेस इस चर्चा में हिस्सा लेगी।’’
सिंह ने कहा कि इस चर्चा के दौरान कांग्रेस राज्य में बड़ी मात्रा में मादक पदार्थ की जब्ती पर चर्चा करेगी जो चंदेल स्वायत्त जिला परिषद के अध्यक्ष लुखोसेई जोऊ से जुड़ा है। वह उस समय भाजपा नेता थे। वहीं विपक्षी पार्टी कोविड-19 महमारी के प्रसार और लॉकडाउन के दौरान जरूरी वस्तुओं के उपलब्ध नहीं होने जैसे मुद्दे को उजागर करेगी।
भाजपा नीत सरकार के सामने 17 जून को राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया था क्योंकि छह विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया था, वहीं भाजपा के तीन विधायक पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। हालांकि भाजपा के शीर्ष नेताओं और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा के हस्तक्षेप के बाद नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के चार विधायक बाद में गठबंधन में वापस आ गए। संगमा एनपीपी के सुप्रीमो हैं।