बंबई हाई कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार से सवाल किया कि क्या उसके पास यह सुनिश्चित करने के लिए कोई नियामक तंत्र है कि राज्य में निजी अस्पताल और नर्सिंग होम कोविड-19 महामारी के दौरान पीपीई किट और अन्य सहायक वस्तुओं के लिए ज्यादा शुल्क नहीं लें।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने अस्पतालों द्वार लिए जाने वाले शुल्कों की सीमा तय करते हुए दिशानिर्देश जारी किए हैं लेकिन अस्पताल उनका पालन करें, यह सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रणाली नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘‘हमें लगता है कि राज्य सरकार ने अस्पतालों द्वारा अधिक शुल्क लिए जाने पर काबू पाने के लिए किसी पहलू पर ध्यान नहीं दिया है। विनियमित करने के संबंध में राज्य का क्या प्रस्ताव है? कोई तंत्र नहीं होने के कारण, सरकार इन अस्पतालों को कीमतें तय करने के लिए अनियंत्रित शक्ति दे रही है।’’
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह हलफनामा दायर कर यह बताए कि निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम द्वारा राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र है।
अदालत ने सरकार से सवाल किया कि वह दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाले से कैसे निपटती है? सरकार कैसे सुनिश्चित करती है कि सभी अस्पताल उसके दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं? मामले में अगली सुनवाई 21 सितंबर को होगी।