देहरादून : उत्तराखंड सरकार के देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन त्रिवेंद्र सरकार का एतिहासिक निर्णय है। अधिनियम बनने से चारों धाम और 51 मंदिरों के सुनियोजित विकास हो सकेगा। प्रदेश में तीर्थाटन को बढ़ाने की दिशा में सरकार के इस कदम से प्रदेश में पर्यटन की तस्वीर बदलेगी और रोजगार के नये आयाम खुलेंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम के तहत गठित होने वाला बोर्ड प्रदेश में धार्मिक पर्यटन की तस्वीर बदल देगा।
मंदिरों में आधारभूत ढांचागत विकास के साथ पर्यटकों के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं विकसित होंगी। स्थानीय तीर्थ पुरोहितों और अन्य हक हकूकधारियों के सभी अधिकारों को सुरक्षित रखा जाएगा। चारों धाम के लिए सिंगल प्वाइंट व्यवस्था की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
एक छतरी के नीचे आने से चारों धाम के प्रबंधन में आपसी समन्वय बढ़ेगा और व्यवस्थाओं में सुधार होने से देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को सहूलियत होगी। बोर्ड के गठन के प्रस्ताव से तीर्थ पुरोहितों व हक हकूक धारियों ने कुछ आशंकाएं जताई हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इन आशंकाओं को निराधार बताते हुए स्पष्ट किया है कि सभी के हक हकूक पूरी तरह सुरक्षित रखे गए हैं। परंपराओं का पूरा ध्यान रखा गया है। मंदिरों के रावल और पुजारियों की नियुक्ति पहले से चली आ रही परंपराओं के अनुसार ही की जाएगी।
तीर्थ पुरोहितों के हितों को सुनिश्चित किया गया है। चारों धाम की व्यवस्थाओं में सुधार की आवश्यकता महसूस करते हुए वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी की व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि 1986 में वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के बनने के बाद वहां की यात्रा व्यवस्थाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। राज्य सरकार व शासन स्तर पर काफी विचार विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी की तर्ज पर यहां भी चारधाम श्राइन बोर्ड बनाया जाए।
परंतु इसमें यहां की परंपराओं का पूरा ध्यान रखा जाए। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ इसके अंतर्गत आने वाले सभी मंदिरों का ज्यादा अच्छे तरीके से रखरखाव होगा। पौराणिक महत्व के मंदिरों की धरोहर को संरक्षित किया जा सकेगा। इन धर्मस्थलों व मंदिरों का नियोजित विकास होगा।