मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमण का असर धीरे-धीरे कम हो चला है। यही कारण है कि मंगलवार से कोरोना कर्फ्यू में ढ़ील मिली। बीते तीन माह में कोरोना ने कई परिवारों की खुशियां छीन ली तो कई को अनाथ कर दिया। राज्य में कोरोना के खिलाफ हर स्तर पर लड़ाई लड़ी गई और इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी भूमिका का निर्वहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
राज्य में मार्च से लेकर मई माह तक कोरोना के संक्रमण ने अपना भरपूर असर दिखाया। मई का अंत होते-होते हालात सुधरने लगे और संक्रमितों की संख्या में भी लगातार गिरावट आती गई। यही कारण है कि राज्य में वर्तमान में 24 घंटों में लगभग 15 सौ नए प्रकरण सामने आए हैं तो वहीं पांच हजार से ज्यादा मरीज स्वस्थ भी हुए हैं। वही अप्रैल माह में देखें, तो एक दिन में नए संक्रमित ओं की संख्या लगभग 14 हजार तक पहुंच गई थी।
राज्य में मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण सरकारी से लेकर निजी अस्पतालों तक में मरीजों को बेड तक नहीं मिल पा रहे थे, तो वही ऑक्सीजन का संकट था। इसके अलावा रेमडेसीविर इंजेक्शन भी आसानी से मिलना मुश्किल हो गया था। स्थितियां सरकार के लिए नई चुनौती बनती जा रही थी उसके बाद सरकार ने हालात को संभालने के लिए सख्ती दिखाई। जिन निजी अस्पतालों में अव्यवस्थाएं थी या इंजेक्शन की कालाबाजारी हो रही थी, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई तो की ही गई, दूसरी ओर कोरोना कर्फ्यू जैसे कदम उठाए।
राज्य में कोरोना के बढ़ते संक्रमण से निटपने के लिए मुख्यमंत्री चौहान ने आमजन से भी सहयोग की अपील की। उसी का नतीजा रहा कि राज्य के कई गांवों में लोगों ने खुद ही जनता कर्फ्यू लगा दिया। परिणाम स्वरूप कोरोना के मरीजों की संख्या में कमी होती गई। इस दौरान मुख्यमंत्री चौहान की सक्रियता पर गौर करें तो एक बात सामने आती है कि उन्होंने क्राइसिस मैनेजमेंट समिति के जरिए जमीनी हकीकत को जाना और जो व्यवस्थाएं गड़बड़ थी, उन्हें सुधारने के निर्देश दिए और सख्ती भी दिखाई।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोरोना महामारी से निपटने के लिए किए गए प्रयासों का प्रमाण इस बात से मिलता है कि उन्होंने मार्च से लेकर मई तक अर्थात लगभग 90 दिनों में 162 से अधिक बैठके ली। इसका आशय है कि एक दिन में औसतन दो बैठकें कोरोना को लेकर ली। उन्होंने इस दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हर स्तर पर संवाद स्थापित किया, उन्होंने अधिकारियों से लेकर सेवा में लगे चिकित्सक और विशेषज्ञों से भी संवाद जारी रखा। इतना ही नहीं नर्सों और आंगनवाड़ी कार्यकतार्ओं से भी उनका संवाद बना रहा, जिससे उन्हें जमीनी हकीकत की जानकारी मिली तो हालात को सुधारने में भी मदद मिली।