कांग्रेस उन तीन राज्यों में से किसी में भी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा नहीं बनने जा रही है जहां 2018 में उसके पास बहुत अधिक सीटें थीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य के सबसे शक्तिशाली परिवारों में से एक ने पार्टी छोड़ दी है, और कांग्रेस ने केवल त्रिपुरा में नए सदस्य प्राप्त करने में कामयाब रहे। बता दें इन तीन राज्यों के चुनाव का हासिल उसके लिए यह है कि वह महज 8 सीटों पर ही सिमट गई है। इनमें भी नागालैंड में तो उसकी एक भी सीट नहीं आई है। इसके अलावा त्रिपुरा में 3 और मेघालय में 5 सीटें ही हासिल हुई हैं।
पिछले 10 सालों से लगातार कांग्रेस को घाटा
2018 में तीनों राज्यों में कांग्रेस के पास 21 सीटें थीं। हालांकि, 10 साल पहले (2013 में) कांग्रेस के पास तीनों राज्यों में 47 सीटें थीं। इनमें से मेघालय में उसके पास सबसे अधिक सीटें थीं और वह 29 सीटों के साथ सत्ता में थी। इस बीच, सीपीएम ने भले ही सत्ता हासिल कर ली हो, लेकिन कांग्रेस भी 10 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी थी। नागालैंड में इस बार भी कांग्रेस जीरो है और 2018 में भी जीरो थी। हालांकि 2013 में यहां उसे 8 सीटें मिली थीं, लेकिन पिछले 10 सालों से लगातार उसे घाटा हो रहा है।
पार्टी को परंपरागत रूप से नहीं मिला ज्यादा समर्थन
कांग्रेस चिंतित है क्योंकि पूर्वोत्तर के तीन राज्यों – असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भाजपा सत्ता में है। भाजपा ने पिछले 10 वर्षों में वहां अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि कांग्रेस बड़े राज्यों में संघर्ष कर रही है। हालाँकि, भाजपा ने ओडिशा, बंगाल और केरल – पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है जहाँ पार्टी को परंपरागत रूप से बहुत अधिक समर्थन नहीं मिला है।