नैनीताल : उत्तराखंड में शराबबंदी को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि राज्य स्थापना के बाद पिछले 18 साल में सरकार की ओर से कब-कब और किन-किन स्थानों में शराबबंदी की गयी है। अदालत ने सरकार को इस मामले में विस्तृत हलफनामा पेश करने को कहा है। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति नारायण सिंह धनिक की युगलपीठ में हुई।
अधिवक्ता डी.के. जोशी की ओर से राज्य में शराबबंदी और शराब के चलन को हतोत्साहित करने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गयी है। यह याचिका पिछले साल दायर की गयी थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से उत्तर प्रदेश आबकारी अधिनियम 1910 की धारा 37 ए के तहत मामले को चुनौती दी गयी है। जोशी ने बताया कि आबकारी अधिनियम की धारा 37 ए के तहत कुछ क्षेत्रों में शराबबंदी के लिये प्रावधान सुनिश्चित किये गये हैं।
इस प्रावधान के तहत शैक्षिक, धार्मिक क्षेत्रों के अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े, पर्वतीय एवं अनुसूचित जाति-जनजाति क्षेत्रों को शामिल किया गया है। अधिवक्ता की ओर से अदालत से मांग की गयी है कि सरकार को शराब से बड़े पैमाने पर होने वाले नुकसान का आकलन करना चाहिए और उसी के अनुसार उपाय भी किये जाने चाहिए। राज्य में पिछले 18 साल में शराब बिक्री के राजस्व लक्ष्य में अभूतपूर्व तरीके से वृद्धि हुई है।