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दिग्विजय सिंह की बढ़ी सियासी सक्रियता के मायने, राजनीति में फिर करना चाह रहे है पकड़ मजबूत

मध्यप्रदेश में राज्यसभा सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राज्य में राजनीतिक सक्रियता तेजी से बढ़ रही है। उनकी इस सक्रियता के मायने भी खोजे जाने लगे हैं।

मध्यप्रदेश में राज्यसभा सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राज्य में राजनीतिक सक्रियता तेजी से बढ़ रही है। उनकी इस सक्रियता के मायने भी खोजे जाने लगे हैं। सियासी अनुमान तो यहां तक लगाया जा रहा है कि दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश की राजनीति में फिर अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रहे हैं।
राज्य में कांग्रेस लगभग डेढ़ दशक तक संघर्ष करने के बाद वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के उपचुनाव में सत्ता में वापसी कर पाई थी, मगर उसके पास सत्ता महज 15 माह ही बनी रह पाई। कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकलने की वजह आपसी सामंजस्य न होने को माना गया और इसको लेकर दिग्विजय सिंह पर बड़े हमले भी हुए। ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस छोड़ने की बड़ी वजह भी दिग्विजय सिंह को भी आज तक माना जाता है।
बीते कुछ दिनों की राज्य की कांग्रेस की राजनीति पर गौर करें तो पता चलता है कि पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का स्वास्थ्य बिगड़ा, दिल्ली में उपचार चला और उसके बाद उनकी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रियता भी बढ़ी है। उन्हें पंजाब और राजस्थान में पार्टी के नेताओं के बीच समन्वय की अघोषित जिम्मेदारी सौंपी गई है। कमलनाथ गांधी परिवार के नजदीकियांे में गिने जाते रहे हैं। अहमद पटेल के निधन के बाद कमलनाथ की सोनिया गांधी से नजदीकियां और बढ़ी है साथ ही कई बड़े नेताओं के मुखर होते गांधी परिवार के खिलाफ स्वरों के कारण कमलनाथ की उपयोगिता भी बढ़ गई है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि कमलनाथ के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने पर राज्य में कांग्रेस के पास बड़े चेहरे का संकट हो सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, सुरेष पचौरी, अजय सिंह जैसे कुछ नेता है जो राज्य के बड़े हिस्से में पहचान रखते है, मगर उनकी दिल्ली में पकड़ वर्तमान में कमजोर है। इस स्थिति को भांपते हुए दिग्विजय सिंह ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। उसी सक्रियता का पहला कदम भोपाल के साइबर सेल में क्लब हाउस चैट से छेड़छाड़ को लेकर शिकायत दर्ज कराना है।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अब्बास हफीज का कहना है, ” दिग्विजय सिंह वह नेता है जो जनता की हमेशा लड़ाई लड़ते रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा को उनका डर सताता है और दिग्विजय सिंह उनके निशाने पर भी रहते हैं। उनकी सकियतो को लेकर कोई मायने नहीं खोजे जाना चाहिए।”
कांग्रेस के राज्य की सत्ता से बाहर होने के बाद दिग्विजय सिंह की सक्रियता लगातार कम होती गई, कोरोना काल में तो वे खुलकर कम ही नजर आए। अब उनकी सक्रियता बढ़ी है तो कयासबाजी का दौर भी जोर पकड़ रहा है। कांग्रेस में वैसे भी इस बात को लेकर भीतरी द्वंद चल रहा है कि कमल नाथ अगर प्रदेशाध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष में से एक पद छोड़ेंगे तो किसे मिलेगा यह पद। अनुमान तो यह भी लगाए जा रहे है कि दिग्विजय सिंह वह पद जो कमल नाथ छोड़ेंगे, उसे अपने करीबी को दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

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