तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि की उस टिप्पणी को द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) नीत सरकार ने निशाने पर लिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें विधानमंडल से पारित विधेयकों को रोककर रखने का अधिकार है। पार्टी ने रवि की इस टिप्पणी का विरोध करते हुए कहा कि विधेयकों पर मंजूरी देने में राज्यपाल द्वारा अनावश्यक रूप से देरी करना ‘‘कर्तव्य की उपेक्षा’’ के समान है।
दबाव पड़ने पर राज्यपाल प्रश्न पूछेंगे
राज्यपाल की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने बृहस्पतिवार को कहा कि रवि विधेयकों को ठंडे बस्ते में नहीं रख सकते। उन्होंने कहा, ‘‘दबाव पड़ने पर राज्यपाल प्रश्न पूछेंगे और इसे सरकार को वापस भेज देंगे। इसके साथ ही उनका कर्तव्य पूरा हो जाता है।’’
राज्यपाल का विवेकाधिकार
बृहस्पतिवार को यहां राजभवन में ‘थिंक टू डेयर’ श्रृंखला के तहत सिविल सेवा के उम्मीदवारों के साथ बातचीत के दौरान रवि ने राष्ट्रपति की सहमति के लिए उनके पास भेजे गए विधानसभा विधेयकों पर टिप्पणी की और कहा कि ‘‘राज्यपाल के पास तीन विकल्प होते हैं: सहमति दें, रोककर रखें और तीसरा विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजना। इनमें से किस विकल्प का इस्तेमाल करना है, यह राज्यपाल का विवेकाधिकार होता है।’’
मुख्यमंत्री ने किया दावा
स्टालिन ने कहा कि यह संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए ‘‘अशोभनीय’’ है जो विधेयकों को ‘‘साहसपूर्वक स्वीकार करने या विरोध करने के बिना इसे रोककर’’ रखता है। मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि राज्यपाल को जनप्रतिनिधियों द्वारा परिकल्पित उन विधेयकों, अध्यादेशों और संशोधनों में देरी करने की आदत हो गई है जिन्हें उन्हें मंजूरी के लिए भेजा जाता है।