तेलंगाना फायर वर्कर्स डीलर्स एसोसिएशन (TFWDA) ने सुप्रीम कोर्ट में तेलंगाना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए 12 नवंबर के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। अधिवक्ता सोमाद्रि गौड के द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि TFWDA के सदस्य हाई कोर्ट के आदेश से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं जो कि आजीविका के उनके अधिकार का उल्लंघन है। दलील में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने पटाखे बनाने वालों और उन्हें बेचने के काम में लगे लोगों के बारे में सोचे बिना ही इस आदेश को पारित कर दिया है।
एसोसिएशन की तरफ से तर्क दिया गया है कि दीपावली की पूर्व संध्या पर पारित किया गया हाई कोर्ट का आदेश भारी वित्तीय कठिनाइयों का कारण बना है, पटाखे एक "मौसमी व्यवसाय है जिसके लिए भारी निवेश किया गया है। "इस आदेश को संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का हनन करार देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा है कि हाई कोर्ट उन “आर्थिक प्रतिकूलताओं पर विचार करने में विफल रहा जो लगभग लाखों लोगों और उनके परिवारों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालेगी।”
भारत में यह फैसला सुनाया गया था कि केवल हरे और बेहतर पटाखों को पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीईएसओ) के निर्धारित मानकों के पालन में निर्मित और बेचे जाने की अनुमति होगी। याचिका में कहा गया है, "ये हरे पटाखे उत्सर्जन को 25-30% तक कम कर देते हैं।" जबकि तेलंगाना और कलकत्ता हाई कोर्ट ने दिवाली के मौसम के दौरान पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी और कोविड -19 स्थिति पर इसका प्रभाव पड़ सकता है, मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में तमिलनाडु और केंद्र सरकारों को वैकल्पिक रोजगार योजनाओं को शुरू करने का आदेश दिया जिनकी आजीविका ऐसे प्रतिबंधों से प्रभावित हुई है।
बता दें कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के तहत दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में सभी प्रकार के पटाखों पर 9 -10 नवंबर 2020 की मध्यरात्रि से 30 नवंबर - 1 दिसंबर 2020 की मध्यरात्रि तक कुल प्रतिबंध का आदेश दिया। एनजीटी ने आगे कहा कि इस तरह का प्रतिबंध पूरे देश के सभी शहरों / कस्बों पर भी लागू होगा जहां "नवंबर के दौरान परिवेशी वायु गुणवत्ता का औसत (पिछले वर्ष के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार) 'खराब' और इससे ऊपर की श्रेणी में आता है।"