सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत नये संसद भवन के प्रस्तावित निर्माण के औचित्य पर सवाल उठाते हुए राज्यसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 संकट के बीच नरेंद्र मोदी सरकार के पास इस परियोजना के लिए तो खूब पैसा है, लेकिन गरीबों के खातों में न्यूनतम आय पहुंचाने को लेकर कांग्रेस की मांग पर वह कथित रूप से धन की तंगी की बात करती है।
सिंह ने यहां संवाददाताओं से कहा, "मैं नया संसद भवन बनाने की परियोजना का औचित्य समझ नहीं पा रहा हूं। हम इस परियोजना का पूरी तरह विरोध करते हैं।"कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य ने कहा, "मोदी सरकार कोविड-19 संकट के नाम पर हर बात में पैसों की कमी का हवाला दे रही है। बाकी बातें छोड़ दीजिए, सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड) की निधि भी दो साल के लिए रोक दी गई है।"
उन्होंने कहा, "कांग्रेस ने मांग की थी कि मोदी सरकार न्यूनतम आय गांरटी योजना (न्याय) लागू करते हुए गरीबों के खातों में सीधे रकम पहुंचाए। सरकार के पास इस काम के लिए धन नहीं है। लेकिन कॉरपोरेट दिग्गजों को सहूलियत भरे कर्ज देने और नया संसद भवन बनाने के लिए उसके पास खूब पैसा है।"
किसानों द्वारा मंगलवार को बुलाए गए ‘भारत बंद’ का समर्थन करते हुए सिंह ने कहा, "प्रधानमंत्री वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करते हैं, लेकिन गेहूं, धान और मक्का सरीखी फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बिक रही हैं।"
उन्होंने नये कृषि कानूनों का विरोध करते हुए कहा कि इनसे अन्नदाताओं के शोषण का रास्ता उसी तरह खुल गया है, जिस तरह गुलाम भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों का शोषण किया करती थी।
सिंह ने देश की आम जनता पर कोविड-19 के टीके के इस्तेमाल को लेकर कथित जल्दबाजी के प्रति आगाह करते हुए कहा, "भारत के लोगों को गिनी पिग (चूहे और गिलहरी सरीखे जानवरों की एक प्रजाति जिस पर दवाओं, टीकों आदि का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है) नहीं बनाया जाना चाहिए। भारत किसी टीके के लिए कोई प्रयोगशाला नहीं हो सकता है।"
उन्होंने कहा, "हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने शोहरत पाने के लिए कोविड-19 का परीक्षण टीका लगवाया था। इसके बाद भी वह इस महामारी की चपेट में आ गए। अब इस बारे में सफाइयां दी जा रही हैं।"सिंह ने अपने गृह राज्य मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर पिछले महीने संपन्न उपचुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को मिली कामयाबी को लेकर आश्चर्य जताते हुए कहा, "आम लोगों की नाराजगी के चलते जिन उम्मीदवारों को गांवों में घुसने तक नहीं दिया जा रहा था, वे 50,000 से 70,000 वोटों से उप चुनाव जीत गए। यह कैसा चुनाव था?"
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "मैं तो शुरू से ही कह रहा हूं कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का बटन दबाने के बाद जब तक मतदान पर्ची हमारे हाथ में नहीं आ जाती, तब तक हमें (ईवीएम पर) विश्वास नहीं होता।"