स्वतंत्रता सेनानी और पद्मश्री से सम्मानित मोहन रानाडे का मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद पुणे में निधन हो गया। वह 89 साल के थे। उन्होंने पुर्तगाली शासन के खिलाफ गोवा के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था।
रानाडे आजाद गोमांतक दल के सदस्य थे। यह स्वतंत्रता सेनानियों का एक समूह था, जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सशस्त्र हमलों के सिद्धांत में विश्वास करता था और गोवा में कई पुर्तगाली प्रतिष्ठानों पर घात लगाकर सशस्त्र हमला किया करता था। पुर्तगाली पुलिस थाने इसके निशाने पर हुआ करते थे।
रानाडे को 1955 में बेतिम पुलिस थाने पर सशस्त्र हमला करने को लेकर गिरफ्तार किया गया। रानाडे का जन्म सांगली में हुआ था। उन्होंने गोवा में एक मराठी स्कूल शिक्षक के रूप में काम किया। थाने पर हमले के लिए उन्हें पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन के निकट कैक्सियस के किले में 26 साल के कारावास की सजा दी गई।
रानाडे के फेफड़ों में गोलियां लगने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। इस जख्म के ठीक होने के बाद उन्हें पहले पांच साल के लिए गोवा के एकांत कारावास में सजा दी गई। इसके बाद पुर्तगाल भेजा गया। उन्होंने गोवा के स्वतंत्रता संघर्ष के लिए 14 साल जेल में बिताए। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रानाडे के निधन पर शोक जताया है।