देहरादून : कुमाऊं मंडल में सरकारी क्षेत्र की गदरपुर चीनी मिल का बंद होना तय माना जा रहा है। उत्तराखंड शुगर फेडरेशन के प्रबंध निदेशक ने शासन को सौंपी रिपोर्ट में गन्ने की अनुपलब्धता के मद्देनजर इस चीनी मिल को बंद करने की सिफारिश की है। वहीं, बंद चल रही सितारगंज चीनी मिल को फिर से चलाने के लिए इसे पीपीपी मोड या लेबर कॉन्ट्रेक्ट के माध्यम से चलाने का सुझाव दिया गया है।
हालांकि, इन दोनों ही मामलों में अंतिम फैसला सरकार को लेना है। इसे देखते हुए अब ये मसले अगली कैबिनेट के समक्ष रखे जाने की तैयारी है। प्रदेश की छह सरकारी चीनी मिलों में से वर्तमान में डोईवाला, बाजपुर, नादेही व किच्छा ही संचालित हो रही हैं। सितारगंज और गदरपुर चीनी मिलें लंबे समय से बंद पड़ी हैं। गदरपुर चीनी मिल के बंदी के कगार पर पहुंचने की मुख्य वजह उसके पास गन्ने की उपलब्धता न होना है। इसे देखते हुए मिल प्रबंधन ने इसे चलाने में असमर्थता जताई है।
इसके अलावा सितारगंज चीनी मिल को उसके प्रबंधन ने चलाने की कोशिश की, मगर सफलता नहीं मिल पाई। इसे देखते हुए सरकार ने हाल में शुगर फेडरेशन के प्रबंध निदेशक चंद्रेश कुमार से रिपोर्ट मांगी। सूत्रों के मुताबिक प्रबंध निदेशक यह रिपोर्ट शासन को सौंप चुके हैं। इसमें गदरपुर चीनी मिल को बंद करने की सिफारिश की गई है। वहीं, 2017 से बंद चल रही सितारगंज चीनी मिल के बारे में सुझाव दिया गया है कि इसे पीपीपी मोड में दिया जा सकता है।
इसके अलावा ये भी विकल्प सुझाया गया है कि मिल प्रबंधन इसे लेबर कांट्रेक्ट के जरिये भी चला सकता है। सूत्रों के मुताबिक शासन स्तर पर अब इन दोनों मिलों के संबंध में शासन स्तर पर मंथन चल रहा है। अब इन मसलों को कैबिनेट में रखे जाने के मद्देनजर प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं।