मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने बुधवार को खेद व्यक्त किया कि औपनिवेशिक गुलामी से गोवा की आजादी के लिए लड़ने वाले कई स्वतंत्रता सेनानियों को, 1961 में राज्य की स्वतंत्रता के वर्षो बाद भी पुर्तगाली जेलों से नहीं निकाला जा सका है। वह पणजी में दिवंगत मोहन रानाडे को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित शोक सभा में बोल रहे थे, जिन्होंने गोवा के लिए स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और 25 जून को पुणे में उनका निधन हो गया था।
सावंत ने कहा, "गोवा की स्वतंत्रता के बाद रानाडे को मुक्त किया जाना चाहिए था। उन्हें स्वतंत्रता के बाद आठ साल तक (पुर्तगाली जेल में) रहना पड़ा। यह हमारे लिए दुख की बात है। हमें 1961 में आजादी का फल मिला, लेकिन जो लोग आजादी के लिए लड़े वे जेल में रह गए.. गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में मुझे इस बात का अफसोस है।" रानाडे आजाद गोमांतक दल के सदस्य थे, जो क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों का एक समूह था, जो उपनिवेशवादी शासन के खिलाफ सशस्त्र हमलों के सिद्धांत में विश्वास करता था और गोवा में कई पुर्तगाली प्रतिष्ठानों पर हथियारों से वार करने में भाग लेता था, उनके पसंदीदा लक्ष्य पुलिस थाने थे।
सांगली में जन्मे रानाडे जो गोवा में एक मराठी स्कूल के शिक्षक के रूप में अंडरकवर थे, 1955 में बेतीम पुलिस थाने पर एक सशस्त्र हमले के लिए गिरफ्तार किए गए। उन्हें लिस्बन के पास एक पुर्तगाली जेल में 14 साल की सजा काटने से पहले गोवा में पांच साल तनहाई कारावास की सजा सुनाई गई थी। 1961 में गोवा के पुर्तगाली शासन से मुक्त होने पर वह जेल में थे। उन्हें तब रिहा किया गया, जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री सी. एन. अन्नादुरई ने पोप पॉल षष्ठम से आग्रह किया कि वह पुर्तगाली सरकार से रानाडे को कैद से मुक्त करने का अनुरोध करें।