देहरादून : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पहाड़ से अटूट नाता रहा। यही वजह रही कि वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर से हार का सामना करने के बाद वह मन को शांत करने के लिए उत्तरकाशी स्थित गंगोत्री धाम की यात्र को निकल पड़े थे। पूरी यात्रा में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रहे भारतीय जनसंघ के सक्रिय कार्यकर्ता सूरतराम नौटियाल बताते हैं कि पहले दिन उन्हें भटवाड़ी स्थित लोनिवि के विश्राम गृह में ठहराया गया। अगले दिन जब वह गंगोत्री के लिए रवाना हुए तो रास्ते में हर्षिल के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गए।
उन्होंने नाराजगी भरे लहजे में कहा कि जब ऐसा स्थल यहां मौजूद है तो उन्हें भटवाड़ी में क्यों ठहराया गया। तब अटल ने हर्षिल की खूबसूरत वादियों की तारीफ करते हुए कहा कि स्विटजरलैंड को तराशकर खूबसूरत बनाया गया है, जबकि यह स्थान तो प्राकृतिक रूप से ही सुंदर है। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी यहां वन विभाग के विल्सन बंगले में न सिर्फ रुके, बल्कि हर्षिल के अनुपम नजारों को आत्मसात भी किया। जब वह गंगोत्री पहुंचे तो गंगोत्री मंदिर समिति के तत्कालीन सचिव कमलेश सेमवाल ने उन्हें पूजा अर्चना कराई। वह अटल के व्यक्तित्व से खासे प्रभावित होकर बोल उठे कि एक दिन वह जरूर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।
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इस पर उन्होंने सादगीभरे अंदाज में जवाब दिया कि उनकी पार्टी यह चुनाव बुरी तरह हारी है, ऐसे में प्रधानमंत्री बनने की हसरत पालना बेमानी है। हालांकि वर्ष 1996 में 13 दिन तक चली भाजपा की सरकार में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने गंगोत्री के पुजारी कमलेश सेमवाल को आमंत्रित भी किया था। 71 वर्षीय सूरतराम नौटियाल बताते हैं कि पहली बार वह अटल जी से वर्ष 1973-74 में हिमाचल प्रदेश के चुनाव के दौरान मिले थे। तभी से वह उनके व्यक्तित्व से खासे प्रभावित हो गए थे। उनका कहना है कि अटल जैसा व्यक्तित्व देश में ही क्या पूरे विश्व में ढूंढ पाना मुश्किल है।