गुजरात विधानसभा चुनाव पर देशभर की निगाहें टिकी हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गढ़ में भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने के लिए तमाम सियासी दल पुरजोर प्रयास कर रहे हैं। गुजरात में आमतौर से मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता रहा हैं। भाजपा 27 वर्ष से राज्य की सत्ता में काबिज है। इतने लंबे समय के शासन के बावजूद भगवा पार्टी पुनः सरकार बनाने का राह पर हैं। इसका मुख्य कारण हिन्दू समुदाय का समर्थन है। विपक्षी दल कुछ जातियों तथा अल्पसंख्यक वर्ग के वोटों से अपनी राजनीतिक जमीन बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
बात अगर अल्पसंख्यक वोटों की करें तो अभी तक मुस्लिम समुदाय आंख बंद करके कांग्रेस को वोट डालता आया हैं। हालांकि इस बार कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यक वोटों को हासिल करना थोड़ा कठिन साबित होने वाला है। पहले मुस्लिम वर्ग के पास कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता था। लेकिन अब आम आदमी पार्टी (AAP ), ओवैसी की AIMIM मुस्लिमों की पसंद बनते जा रहे हैं। पहले से ही राज्य में कांग्रेस का जनाधार कम है और अब दूसरे सेक्युलर दल भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी के वोटों में सेंध लगाने का प्रयास कर रहे हैं। इस सियासी गणित का असर कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर झेलना पड़ सकता हैं।
मुस्लिम वोटों को नहीं करना चाहते नजरअंदाज
आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मात्र 3 विधायक की जीतने में कामयाब हुए थे। लेकिन यह संख्या 2012 से कुछ बेहतर थी जब सिर्फ 2 विधायक थे। 6.5 करोड़ की कुल राज्य की आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग 11% है और लगभग 25 विधानसभा सीटों पर उनकी अच्छी उपस्थिति है। ऐसे में अपनी जड़ो को जमाने का प्रयास कर रही AAP इन वोटों को किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं करना चाहती है। माना जा रहा है कि आप गुजरात इकाई के प्रमुख गोपाल इटालिया द्वारा पूर्व में दिए गए हिंदू विरोधी बयान भी मुस्लिम वर्ग को अपनी ओर लुभाने का प्रयास था। वहीं बात करे कांग्रेस की तो बीते दिनों छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेता हिन्दू विरोधी बौद्ध सम्मलेन में शामिल हुई थी। जहां कथित रूप से हिन्दू देवी-देवताओं के खिलाफ अपशब्द कहे गए थे। अंतः अगर ऐसा ही चलता रहा तो कांग्रेस देशभर से समाप्त हो जाएगी।