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होलकरों की पारमार्थिक सम्पत्तियां सहेजने के लिए केंद्र सरकार की मदद बेहद जरूरी : सुमित्रा महाजन

सुमित्रा महाजन ने कहा कि इंदौर के पूर्व होलकर शासकों की देश भर में फैली 246 पारमार्थिक संपत्तियों को सहेजने का काम राज्य सरकार के बस का नहीं है और इस विषय में केंद्र की मदद ली जानी जरूरी है।

लोकसभा की अध्यक्ष रहीं सुमित्रा महाजन ने रविवार को कहा कि इंदौर के पूर्व होलकर शासकों की देशभर में फैली 246 पारमार्थिक संपत्तियों को सहेजने का काम राज्य सरकार के चंद अफसरों के बस का नहीं है और इस विषय में केंद्र की मदद ली जानी जरूरी है। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के अहम फैसले में राज्य सरकार को इन संपत्तियों की स्वत्वधारी (टाइटलहोल्डर) करार दिए जाने के 6 दिन बाद महाजन ने यह बात कही।
उन्होंने कहा, खासगी ट्रस्ट की संपत्तियां हिंदुस्तान के कोने-कोने में बिखरी पड़ी हैं। इन्हें (मध्यप्रदेश सरकार के) चंद अधिकारी सहेज नहीं सकेंगे। इन्हें सहेजना आसान काम नहीं है। वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, मैं मानती हूं कि इन परमार्थिक संपत्तियों की रक्षा के लिए प्रदेश सरकार को केंद्र की मदद भी लेनी पड़ेगी।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि इन संपत्तियों की देख-रेख और सुरक्षा के लिए एक स्थायी सूचना तंत्र बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही, इस विषय में विधानसभा से एक विशेष अधिनियम भी पारित कराया जा सकता है। 
गौरतलब है कि महाजन ने इंदौर क्षेत्र की सांसद रहने के दौरान वर्ष 2012 में चौहान को पत्र लिखकर शिकायत की थी कि खासगी ट्रस्ट की संपत्तियों में शामिल हरिद्वार स्थित कुशावर्त घाट को कथित तौर पर अवैध रूप से बेच दिया गया है।
इन सम्पत्तियों को लेकर शासकीय स्तर पर हलचल तब तेज हुई, जब उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने सोमवार को अहम फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को इनका स्वत्वधारी (टाइटलहोल्डर) करार दिया। अदालत ने इन मिल्कियतों को लेकर अलग-अलग वित्तीय गड़बड़ियों के आरोपों की जांच का आदेश भी दिया जिनमें इनकी अवैध बिक्री और कब्जे शामिल है।
देश की आजादी के बाद रियासतकाल की समाप्ति पर पूर्व होलकर शासकों की परमार्थिक संपत्तियों के रख-रखाव के लिए खासगी ट्रस्ट का गठन किया गया था। इस ट्रस्ट की 246 संपत्तियों में 138 मंदिर, 18 धर्मशालाएं, 34 घाट, 12 छतरियां, 24 बगीचे, कुछ कुंड आदि शामिल हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाली ये संपत्तियां मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और देश के अन्य राज्यों में हैं।

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