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झारखंड सरकार की जिला नियोजन नीति 2016 पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक

नीति के आधार पर झारखंड सरकार ने सभी 24 जिलों में हाईस्कूल के 18,000 अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया प्रारंभ की थी।

झारखंड सरकार की जिला नियोजन नीति 2016 को हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने राज्य सरकार की नीति को निरस्त कर दिया है जिसमें स्थानीय लोगों के लिए दस वर्षों तक तृतीय एवं चतुर्थ संवर्ग के रोजगार में सौ प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था।
न्यायमूर्ति हरीशचंद्र मिश्रा, न्यायमूर्ति एस चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की पीठ ने इस मामले में बहस पूरी होने के बाद 21 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। झारखंड सरकार की ‘स्थानीयता एवं रोजगार नीति 2016 राज्य में 14 जुलाई, 2016 को लागू हुई थी। इस नीति के तहत राज्य के 24 जिलों में से 13 जिलों में तृतीय एवं चतुर्थ संवर्ग के 100 प्रतिशत रोजगार उसी जिले के स्थानीय लोगों के लिए दस वर्षों के लिए आरक्षित कर दिए गए थे। 
इसी नीति के आधार पर राज्य सरकार ने सभी 24 जिलों में हाईस्कूल के 18,000 अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया प्रारंभ की थी। इस नीति के चलते 1985 से पहले के राज्य के निवासी ही 13 अनुसूचित जिलों में अपने-अपने जिलों में शिक्षक बनने के लिए आवेदन देने के योग्य थे। इस मामले में याचिकाकर्ता सोनी कुमारी एवं अन्य ने राज्य सरकार की नियोजन नीति और इसके आधार पर शिक्षक नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। 
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस चंद्रशेखर की पीठ ने 15 दिसंबर 2018 को इसे संवैधानिक मामला बताते हुए इसे पूर्ण पीठ के पास भेज दिया था। हाई कोर्ट के इस आदेश के चलते 18,000 में से लगभग नौ हजार से दस हजार तक शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया रद्द हो गई है और अब वहां नए सिरे से नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ हो सकेगी। 
कोर्ट ने 11 गैर अनुसूचित जिलों में शिक्षकों की चल रही नियुक्ति प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं किया और उसे वैध माना जिससे इन जिलों में की गई नियुक्तियां वैध होंगी और वहां चल रही नियुक्ति प्रक्रिया भी वैध होगी। इससे पूर्व इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने राज्य की नियोजन नीति को सही ठहराते हुए कोर्ट में कहा था कि झारखंड की कई परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही यह नीति बनाई गई थी। 

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