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अगर सरकार और आम लोग सहयोग नही देंगे तो पर्यावरण नहीं बच पाएगा : आदिवासी समुदाय

आदिवासी समुदाय पर्यावरण को बचाने के लिये अपनी ओर से पूरा योगदान दे रहा है लेकिन सरकार और लोग इसमे सहयोग नही देंगे तो यह बच नहीं पाएगा।

आदिवासी समुदाय का मानना है कि पर्यावरण को बचाने के लिये अपनी ओर से वह पूरा योगदान दे रहा है लेकिन अगर सरकार और आम लोग इसमें सहयोग नही देंगे तो यह नहीं बच पाएगा। झारखंड के जमशेदपुर में चल रहे जनजातीय सम्मेलन में आदिवासी समुदाय ने पर्यावरण की खराब होती स्थिति पर चिंता जताते हुए यह भी कहा कि जिस पैसे के लिए पर्यावरण दूषित किया जा रहा है, उस पैसे से जीवन नहीं खरीदा जा सकेगा।
टाटा स्टील की ओर से यहां आयोजित संवाद सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ब्राजील से आए आदिवासी समुदाय के वालिस ने कहा कि पैसे की खातिर जंगलों को काटा जा रहा है और नदियों तथा समंदर को दूषित किया जा रहा है। उन्होंने कहा ‘‘एक वक्त ऐसा आयेगा जब सारे पेड़ कट चुके होंगे और नदियों, समुंदरों में एक भी मछली नहीं होगी। तब पैसों से जीवन नही खरीदा जा सकेगा। इसलिए हमें पर्यावरण बचाने के लिए काम करना चाहिए।’’
झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के रहने वाले प्रधान बिरूआ स्कूली बच्चों के साथ मिल कर पर्यावरण को बचाने के लिए काम कर रहे हैं।
एमबीए करने के बाद अच्छी खासी नौकरी छोड़ चुके बिरूआ का कहना है कि चिड़िया को बचाना बेहद जरूरी है क्योंकि पर्यावरण संरक्षण और वन के विस्तार में चिड़िया बहुत अहम भूमिका निभाती हैं। चिड़िया पेड़ के दानों को दूर दूर ले कर जाती है जिससे जंगल का फैलाव होता है। 
बिरुआ ने बताया कि उन्होंने अपने और आसपास के गांवों में स्कूली बच्चों के साथ मिल कर पौधे लगाए और बच्चों से ही अनुरोध किया कि स्कूल जाते समय और स्कूल से लौटते समय वे पौधों को पानी दें ताकि पौधे मरें नहीं। हर बच्चे को दो पौधे का जिम्मा दिया गया। 
उन्होंने कहा कि गर्मी में 500 पौधे लगाए गए थे जिनमें से 296 पौधे सही सलामत हैं। उत्तर त्रिपुरा निवासी यमलाल चोंग रगलॉन्ग ने पर्यावरण के दूषित होने के लिये बढ़ती आबादी को ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा ‘‘पर्यावरण बचाने के लिए जनसंख्या नियंत्रण बहुत ज़रूरी है, क्योंकि आबादी बढ़ने से ज़रूरतें बढ़ती हैं, जिस कारण पेड़ों की कटाई होती है और फ़ैक्टरियां लगानी पड़ती हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है।’’
एनजीओ में काम करने वाले रगलोंग ने कहा कि वे त्रिपुरा में शहरों में जा कर बड़े पौधे लगाते है, और लोगों को पेड़ों की अहमियत बताते हैं। ओड़िशा के कंधमाल ज़िले की रहने वाली शुभरना प्रधान ने कहा ‘‘सरकार और लोग पर्यावरण को ले कर सचेत हो जाएं और जंगलों को न काटें अन्यथा साफ हवा नहीं मिलेगी। आदिवासी समुदाय पर्यावरण को बचाने के लिये अपनी ओर से पूरा योगदान दे रहा है लेकिन सरकार और लोग इसमे सहयोग नही देंगे तो यह बच नहीं पाएगा।’’
टाटा स्टील द्वारा आयोजित इस संवाद सम्मेलन की थीम ‘आदिवासियत आज’ है। बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित यह सम्मेलन 19 नवंबर तक चलेगा। इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए 23 राज्यों के अलावा 10 देशों से जनजातीय समुदाय के सदस्य भी यहां आये हैं।

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