उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 2013 में केदारनाथ त्रासदी से प्रभावित लोगों के पुनर्वास में हुई वित्तीय अनियमितता और जांच समिति की ओर से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं किये जाने के मामले में सरकार से अपना पक्ष रखने के आदेश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति नारायण सिंह धनिक की युगलपीठ ने मुनस्यारी निवासी एवं पूर्व महानिदेशक(स्वास्थ्य) जनार्दन सिंह पांगती की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद ये निर्देश जारी किये हैं।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता बीएन मौलेखी ने न्यायालय को बताया कि केदारनाथ त्रासदी से प्रभावित लोगों के पुनर्वास में अनियमितता बरती गयी है। अनियमितताओं को लेकर शिकायतें मिलने के बाद रूद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने 2017 में एक जांच समिति का गठन किया लेकिन जांच समिति की ओर से पिछले दो वर्षों में कुछ नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से जिम्मेदार लोगों के खिलाफ जांच कर आवश्यक कार्यवाही करने की मांग की गयी है। पिछले साल जून में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को केदारनाथ त्रासदी के फलस्वरूप मंदिर के आसपास क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण में संबंधित अधिकारियों द्वारा की गयी अनियमितताओं के मामले में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने के निर्देश दिये थे। न्यायालय ने 2016 में याचिकाकर्ता सुशील वशिष्ठ की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद ये निर्देश दिये।
याचिकाकर्ता ने केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य में कथित रूप से सार्वजनिक धन के दुरूपयोग का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से उत्तराखंड नवीनीकरण उर्जा विकास एजेंसी (उरेडा) पर सवाल खड़ किये गये थे। उरेडा केदारनाथ में मंदिर के आसपास क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे का निर्माण कराने वाली प्रमुख एजेंसी है।