प्रसार भारती के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जवाहर सरकार ने बुधवार को तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया।
सरकार ने पश्चिम बंगाल के संसदीय मंत्री और तृणमूल के महासचिव पार्थ चटर्जी की उपस्थिति में विधानसभा सचिवालय के कार्यालय में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। इस साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल नेता दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफे से यह सीट खाली हुई थी। त्रिवेदी भाजपा में शामिल हो गए थे। राज्यसभा सीट के लिए उपचुनाव नौ अगस्त को होने हैं और इसके लिए 22 जुलाई को अधिसूचना जारी की गई थी।
तृणमूल ने कहा कि उसने सरकार को ‘‘सार्वजनिक सेवा में उनके अमूल्य योगदान के कारण चुना है, जिससे हमें अपने देश की बेहतर सेवा करने में मदद मिलेगी।’’ सरकार ने नामांकन दाखिल करने के बाद उनमें भरोसा जताने के लिए तृणमूल का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने विधानसभा कक्ष में संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं हर संभव तरीके से उनके (तृणमूल के) भरोसे को पूरा करने की कोशिश करूंगा। विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की जुझारू भावना से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं।’’
सरकार ने लगभग 42 साल सार्वजनिक सेवा में बिताए हैं और वह प्रसार भारती के पूर्व सीईओ भी थे। उन्होंने फरवरी 2017 में अपनी निर्धारित सेवानिवृत्ति से चार महीने पहले अक्टूबर, 2016 में इस्तीफा दे दिया था।
चटर्जी ने कहा, ‘‘दुर्भावना से भरे चुनाव प्रचार अभियान और व्यक्तिगत हमलों के बीच ममता बनर्जी की जीत (राज्य विधानसभा चुनाव में) ने साबित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जितना हमला किया उतना ही उसका माकूल जवाब दिया गया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘त्रिपुरा में (चुनाव रणनीतिकार) प्रशांत किशोर की टीम के दौरे पर भाजपा सरकार की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि वे (भाजपा) डरे हुए हैं।’’
सरकार ने इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को ‘‘असहिष्णु, तानाशाह’’ बताया था। तृणमूल द्वारा अपने नाम की घोषणा के बाद उन्होंने कहा, ‘‘मैं जीवन भर नौकरशाह रहा हूं। मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं लेकिन मैं जनता के विकास के लिए काम जरूर करूंगा और संसद में जनता से जुड़े मुद्दों को उठाऊंगा।’’
विपक्षी दल भाजपा द्वारा प्रत्याशी उतारे जाने की स्थिति में राज्यसभा उपचुनाव होगा अन्यथा, तृणमूल उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया जाएगा। 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वाम दलों को एक भी सीट नहीं मिली थी। सिर्फ इंडियन सेक्युलर फ्रंट ही एक सीट जीत पाई थी।