भोपाल (मनीष शर्मा) भाजपा के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का जिस तरह कांग्रेस में दबदबा था उसी तरह भाजपा में भी बरकरार है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व केंद्र और प्रदेश की राजनीति में उन्हें पूरी तरह से तरजीह देना चाहता है, क्योंकि मध्य प्रदेश से वह एकमात्र ऐसे नेता है, जिन्हें पूरे देश में जाना पहचाना जाता है और वह यूथ आइकॉन भी है। सिंधिया जल्द ही केंद्र में मंत्री बनने वाले हैं।
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बदलने की मनगढ़ंत चर्चाओं के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया कल राजधानी भोपाल के दौरे पर है। सिंधिया निगम मंडलों में होने वाली नियुक्तियां व प्रदेश भाजपा संगठन में अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा काबीज करने के लिए सीएम शिवराज और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मुलाकात करेंगे। माना जा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सिंधिया को उनकी मंशा अनुरूप पद देने की अनुशंसा की है।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूरे देश में यह मैसेज देना चाहता है कि कांग्रेस छोड़कर जो काबिल नेता उनकी पार्टी में आए हैं उन्हें पूर्ण सम्मान दिया जाएगा, जिस तरह आसाम में भाजपा ने कांग्रेस से आए हिमंत बिस्वा शर्मा को मुख्यमंत्री बना कर दिया।
प्रदेश में भाजपा की सरकार सिंधिया की देन है और उपचुनाव में उनके समर्थक जिन्होंने विधायक पद से त्यागपत्र देकर संघर्ष किया और चुनाव हार गए, जिनमें इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, रघुराज कंसाना, मुन्नालाल गोयल प्रमुख है, उन्हें निगम मंडलों की कमान सौंपी जाएगी तथा सम्मान से नवाजा जाएगा। वही संगठन में ग्वालियर चंबल संभाग के वह लोग जो सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आए थे पुणे संगठन में अलग-अलग पद दिए जाएंगे।
सिंधिया के साथ पार्टी छोड़कर आए कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी एवं कृष्णा घाडगे को प्रदेश भाजपा का उपाध्यक्ष या प्रवक्ता भी बनाया जा सकता है, इस बात की प्रबल संभावना है। युवा मोर्चा में भी सिंधिया समर्थकों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाएगा। सूत्र बताते हैं कि ग्वालियर चंबल संभाग के कई नेता भाजपा में सिंधिया के उभरते हुए वर्चस्व को पचा नहीं पा रहे है।
राजधानी भोपाल में संघ और भाजपा की बैठकों का गत दिनों से जो दौर चल रहा है, वह मुख्यमंत्री पद की लॉबिंग नहीं इस बात की आशंका को लेकर ही है कि संगठन व सत्ता में श्रीमंत सिंधिया के लोगों को जो स्थान मिलेगा उसके कारण उनकी पकड़ कमजोर होगी।
प्रभात झा, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया जो कि सिंधिया के क्षेत्र से आते हैं, उनका प्रभाव कम ना हो जाए। मालवा में भी सिंधिया की बहुत पकड़ है, वहां भी कैलाश विजयवर्गीय की चिंता बढ़ी हुई है, क्योंकि सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट को सीएम शिवराज सिंह चौहान की तरफ से पूरी छूट मिली हुई है तथा इंदौर में उन्होंने बहुत कम समय में अपना प्रभुत्व कायम किया है।
मालवा में भी सिंधिया समर्थकों को कई जिम्मेदार पद पर आसीन किया जाएगा। सिंधिया की वजह से भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता तो छीन ली है और उसके नेताओं ने सत्ता का सुख भोगना भी शुरू कर दिया, लेकिन सिंधिया के पार्टी में बढ़ते प्रभाव से उसके नेता अपनी राजनीति को लेकर संशय में हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह सिंधिया के मामले में प्रदेश नेतृत्व को स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्हें प्रॉपर सम्मान नहीं मिला तो पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है, लेकिन राज्य नेतृत्व इस बात को समझने को तैयार नहीं है। बहरहाल मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया का अपना वर्चस्व कायम है और कायम रहेगा।