केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शुक्रवार को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पर वाम शासित राज्य सरकार की आलोचना की और कहा कि इस बारे में उन्हें सूचना नहीं देने को लेकर वह रिपोर्ट मांग सकते हैं।
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर प्रहार करते हुए खान ने कहा कि ‘‘किसी व्यक्ति या राजनीतिक दल की सनक’’ के अनुसार सरकार नहीं चलाई जा सकती और हर किसी को नियमों का सम्मान करना होगा। राज्य सरकार ने 13 जनवरी को उच्चतम न्यायालय में कानून को चुनौती दी थी और इसे संविधान के प्रतिकूल घोषित करने की मांग की थी।
खान ने नयी दिल्ली में संवाददाताओं से कहा, ‘‘जब भी मैं देखता हूं कि उल्लंघन हुआ है, वे नियमों से हट रहे हैं, संविधान के प्रावधानों से इतर होते हैं तो निश्चित तौर पर मैं रिपोर्ट मांगूंगा।’’ राज्यपाल ने कहा कि उन्हें सुनिश्चित करना है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल नहीं हो।
केरल हाउस में संवाददाताओं से मुलाकात में खान ने कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल की भूमिका संविधान में स्पष्ट वर्णित है और नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि इस तरह के मामले जो ‘‘राज्य और केंद्र के बीच संबंध को प्रभावित करते हैं’’ उन मामलों को मुख्यमंत्री को राज्यपाल को सौंपना चाहिए।
खान ने कहा, ‘‘कोई निर्णय लिए जाने से पहले इस तरह के मामलों को मुख्यमंत्री को राज्यपाल को सौंपना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जो मामले राज्य सरकार का संबंध भारत के साथ प्रभावित करते हों… मुख्यमंत्री का कर्तव्य है कि वह इन मामलों को राज्यपाल को सौंपे।’’ उन्होंने कहा कि राज्य का राज्यपाल ‘‘संवैधानिक प्रमुख’’ होता है जो संविधान के मुताबिक सरकार के कामकाज के लिए जिम्मेदार होता है।
उच्चतम न्यायालय में दाखिल मुकदमे के मुताबिक राज्य सरकार ने सीएए 2019 को संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 21 (जीवन और निजी स्वतंत्रता की सुरक्षा) और 25 (अंतरात्मा की स्वतंत्रता और पेशे, कार्य और धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। साथ ही यह धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।
खान ने कहा, ‘‘देश में कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। हम सभी को कानून, संविधान का पालन करना चाहिए। मैं भारत के राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करता हूं। जब राष्ट्रपति अपनी सहमति दे देते हैं तो इसकी रक्षा करना मेरा काम है।’’ राज्यपाल ने केरल में बृहस्पतिवार को मीडिया से बात करते हुए कहा था कि प्रोटोकॉल के मुताबिक उच्चतम न्यायालय में जाने से पहले संवैधानिक प्रमुख होने के नाते उनसे संपर्क किया जाना चाहिए था और उन्होंने सरकार के कदम को ‘‘अनुचित’’ करार दिया।