राजधानी दिल्ली की सीमा पर केंद्र के तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने जब ऐलान किया कि वह पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ अभियान चलाएंगे तब लेफ्ट पार्टियां भी इससे उत्साहित दिखीं। दरअसल, ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव और संयुक्त किसान मोर्चा के अहम सदस्य हन्नान मोलाह सीपीएम पोलिस ब्यूरो के भी सदस्य हैं।
अब जब तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुआ किसानों का आंदोलन कोलकाता पहुंच चुका है तब यहां पहुंचने वाले किसान नेताओं में बलबीर सिंह राजेवाल, राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर तो हैं लेकिन सीपीएम ने खुद को संयुक्त किसान मोर्चा से दूर करना शुरू कर दिया है। दरअसल, बीजेपी के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा की महापंचायतों के लिए सिंगुर और नंदीग्राम को चुना गया है और इन जगहों को वामपंथी अपने लिए लाल सिग्नल के तौर पर मान रहे हैं क्योंकि यही वे जगहे हैं जहां तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता ममता बनर्जी के आंदोलन ने पश्चिम बंगाल की सत्ता में 34 साल तक रही लेफ्ट सरकार को उखाड़ दिया था।
एसकेएम ने शनिवार को नंदीग्राम में महापंचायत की और रविवार को यानी आज सिंगुर में कार्यक्रम का आयोजन होगा। लेफ्ट पार्टी इस बात से भी नाखुश है कि संयुक्त किसान मोर्चा अपनी महापंचायतों में ‘बीजेपी को वोट नहीं’ नारे से आगे नहीं बढ़ रहा। इससे लेफ्ट को शक है कि एसकेएम ना सिर्फ बीजेपी के खिलाफ प्रचार कर रहा है बल्कि यह प्रचार टीएमसी के समर्थन में भी जा रहा है। सीपीएम के किसान संगठन कृषक सभा ने भी कहा है कि वह एसकेएम के कार्यक्रमों का हिस्सा नहीं बनेगा। दरसअल, कृषक सभा का कहना है कि वह अब अपने चुनावी अभियान में व्यस्त है, इसलिए अब एसकेएम के कार्यक्रमों में शामिल होना मुश्किल है।
सीपीएम के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि संयुक्त किसान मोर्चा के कुछ नेता लगातार टीएमसी के संपर्क में है। उन्होंने नंदीग्राम और सिंगुर को महापंचायतों के लिए चुना। इसलिए इसे समर्थन देना असंभव है। शनिवार को भी संयुक्त किसान मोर्चा ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि वे विधानसभा चुनावों में बीजेपी को वोट न दें लेकिन किसान मोर्चा के नेताओं ने यह नहीं कहा कि जनता किसे वोट दे।