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महाराष्ट्र : जलगांव जिले में दो कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत, सरकारी अस्पताल की खराब हालत को किया उजागर

जिलाधिकारी अविनाश धाकने ने बृहस्पतिवार को कहा कि जलगांव सिविल अस्पताल में कोरोना वायरस कम से कम तीन अन्य रोगियों की मौत हुई थी, जो खराब हालत में टॉयलेट जाते समय बेहोश होकर गिर गए थे, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी।

महाराष्ट्र के जलगांव जिले में कोरोना वायरस से संक्रमित एक परिवार की दो महिला रोगियों की मौत होने की घटना ने सरकारी अस्पतालों के खराब हालत को उजागर कर दिया है, जो महामारी से निपटने के लिए जूझ रहे हैं। मृतकों में से एक 82 वर्षीय महिला थी जिसका मामला बुधवार को तब सामने आया जब उसके लापता होने की खबर आयी और फिर उसका शव आठ दिनों बाद शौचालय के अंदर पाया गया। बृहस्पतिवार को, जलगांव शहर की पुलिस ने संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ ‘लापरवाही के कारण मौत होने’ का मामला दर्ज किया। 
31 मई को अस्पताल में आईसीयू में बिस्तर के इंतजार में दूसरी मरीज, महिला की बहू की मौत हो गई थी। जिलाधिकारी अविनाश धाकने ने बृहस्पतिवार को कहा कि जलगांव सिविल अस्पताल में कोरोना वायरस कम से कम तीन अन्य रोगियों की मौत हुई थी, जो खराब हालत में टॉयलेट जाते समय बेहोश होकर गिर गए थे, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी। 
उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक ​​कि उस 82 वर्षीय महिला के शरीर में केवल 76 प्रतिशत ऑक्सीजन पाया गया था। उसे या तो बिस्तर पर सुविधा दी जाना चाहिए थी या अस्पताल के कर्मचारियों को शौचालय तक पहुंचने में उसकी मदद करनी चाहिए थी।’’ महिला का पोता पुणे में एक निजी कंपनी में काम करता है। उसके पिता नासिक के एक निजी अस्पताल में भर्ती है और कोविड​​-19 से उबर रहे हैं। 
भुसावल के रहने वाले युवक के माता-पिता और उसकी दादी को मई के अंतिम सप्ताह में वायरस से संक्रमित पाया गया था। वह खुद उनसे मिलने नहीं जा सके क्योंकि उनकी पत्नी नौ महीने की गर्भवती है। 31 मई को सांस फूलने की शिकायत के बाद युवक की मां को जलगांव सिविल अस्पताल ले जाया गया था। उसके अनुसार, उसे अस्पताल के प्रवेश क्षेत्र में छह घंटे तक इंतजार करना पड़ा क्योंकि आईसीयू में कोई भी बिस्तर उपलब्ध नहीं था।
 
उन्होंने बताया, ‘‘वह एक बार बेहोश हो गई थी और उसे साथी मरीजों के आने तक इंतजार करना पड़ा क्योंकि कर्मचारियों ने उसकी मदद नहीं की। 31 मई को प्रतीक्षालय में उसकी मौत हो गई।’’ वृद्ध महिला का मामला अधिक चौंकाने वाला था क्योंकि अस्पताल के कर्मचारियों को पता ही नहीं चला कि वह 10 जून तक शौचालय में मृत पड़ी हुई थी। सिविल अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पैरामेडिकल कर्मी कोविड-19 रोगियों को छुने से डरते हैं। उन्होंने बताया कि इसको लेकर मेडिकल कर्मियों से बहस भी हो चुकी है क्योंकि वे कोविड-19 रोगियों की सेवा करने के इच्छुक नहीं हैं। 
जिलाधिकारी धाकने ने कहा कि उस मंजिल पर केवल पाँच शौचालय हैं। इसका मतलब है कि अस्पताल से कोई भी कर्मी आठ दिनों तक शौचालय को साफ करने के लिए नहीं गया। एक शौचालय के अंदर से दुर्गंध आने के कारण अन्य रोगियों ने अधिकारियों को इसके बारे में बताया। अस्पताल के डीन डॉ बी एस खैरे को बुधवार देर रात निलंबित कर दिया गया। एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बताया कि घटना को लेकर मामला दर्ज कर लिया गया है और मामले की जांच की जा रही है। 

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