उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि मराठा समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर मुख्यधारा में शामिल है और वह निर्विवाद रूप से राजनीतिक प्रभुत्व वाली जाति है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मराठा समुदाय का सरकारी नौकरियों में भी पर्याप्त एवं संतोषजनक प्रतिनिधित्व है और ग्रेड ए, बी, सी और डी श्रेणियों में मुक्त श्रेणी के पदों में उनका प्रतिनिधित्व औसतन करीब 30 फीसदी से भी अधिक है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा, ” एक समुदाय का सरकारी सेवाओं में इतनी भारी संख्या में प्रतिनिधित्व होना, इस समुदाय के लिए गर्व का विषय है और सरकारी नौकरियों में इनका प्रतिनिधित्व किसी भी सूरत में अपर्याप्त नहीं कहा जा सकता।”
इससे पहले दिन में उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र की शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी राज्य के कानून को ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए बुधवार को इसे खारिज कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि 1992 में मंडल फैसले के तहत निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के उल्लंघन के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है।
न्यायालय ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 के मंडल फैसले (इंदिरा साहनी फैसले) को पुनर्विचार के लिए वृहद पीठ के पास भेजने से भी इनकार कर दिया और कहा कि विभिन्न फैसलों में इसे कई बार बरकरार रखा है।