देहरादून : उत्तराखंड में 11 अप्रैल को प्रथम चरण में लोकसभा चुनाव में 61.50 प्रतिशत वोट हुआ। पर्वतीय प्रदेश के दूरस्थ भागों से डाटा इकट्ठा करने के बाद शुक्रवार देर रात यहां चुनाव आयोग द्वारा जारी अंतिम आंकडों के अनुसार, उत्तराखंड में इस बार 78.56 लाख मतदाताओं में से 61.50 फीसदी ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। वर्ष 2014 में पिछले आम चुनाव में दर्ज किये गये 62.15 फीसदी मतदान के मुकाबले इस बार मतदान में थोड़ी गिरावट दर्ज की गयी है।
मतदान समाप्त होने के बाद गुरुवार को जारी एक पूर्व रिपोर्ट में आयोग द्वारा बताया गया अस्थाई वोट आंकड़ा 57.85 प्रतिशत था। मतदाता सूची में कुल 78.56 लाख मतदाता पंजीकृत थे। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि राज्य में युवाओं के साथ ही वोट का पलायन भी बढ़ रहा है।
उत्तराखंड में यदि वर्ष 2009 से 2019 के मतदान प्रतिशत को अगर देखा जाए तो इसमें औसत रूप से गिरावट दर्ज की जा रही है। इस बार हरिद्वार सीट पर सर्वाधिक 68.92 फीसदी मतदान दर्ज किया गया जबकि नैनीताल सीट 68.69 फीसदी मतदान के साथ दूसरे स्थान पर रही । टिहरी सीट पर 58.30 प्रतिशत, पौडी में 51.82 प्रतिशत और अल्मोडा (सुरक्षित) सीट पर लोग मतदान के लिये बाहर निकले।
पलायन रुकने से बढ़ेगा वोट प्रतिशत : डॉ. राजेश
समाज शास्त्री डॉ. राजेश कुमार बताते हैं कि उत्तराखंड में बढ़ती बेरोजगारी के चलते पर्वतीय जिलों में वोट का प्रतिशत लगातार गिर रहा है। राज्य में वोट का प्रतिशत गिरने के पीछे पलायन पूरी तरह से जिम्मेदार है। डॉ. राजेश बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य बनने के 19 साल बाद भी सुदूरवर्ती गांवों में अबतक विकास नहीं पहुंच पाया है।
गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी जैसी आवश्यक सुविधाएं नहीं पहुंच पाने और बेरोजगारी के कारण पलायन लगातार बढ़ रहा है। यही कारण है कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में मैदान के मुकाबले काफी कम मतदान होता है। गांवों को स्वावलंबी बनाकर ही पलायन को रोका जा सकता है। गांवों से पलायन रुकने पर ही मतदान भी बढ़ेगा।