उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि विद्यार्थियों में नैतिक मूल्य और अच्छे आचार-विचार विकसित करने तथा देश को ज्ञान एवं नवाचार के गढ के रूप में विकसित करने के लिए वर्तमान शिक्षा प्रणाली को नई दिशा दिये जाने की जरूरत है। उपराष्ट्रपति ने आज यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के 32वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उच्च शिक्षा प्रणाली में पूरी तरह से बदलाव लाने पर विशेष जोर दिया जिससे कि 21वीं सदी की अत्यंत तेजी से बदलती जरूरतों को पूरा किया जा सके।
उन्होंने पाठ्यक्रम एवं अध्यापन व्यवस्था में अपेक्षित बदलाव लाने के साथ साथ व्यावहारिक शिक्षण पर भी विशेष बल दिया।विश्वविद्यालय के विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्रों से डिग्री और डिप्लोमा की पढाई पूरी करने वाले विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र प्रदान करने के बाद उन्होंने कहा कि अपने सपने साकार करने के लिए उन्हें पूरी तन्मयता और ईमानदारी के साथ अपना कार्य करना चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों से इन प्रमाण पत्रों की कसौटी पर खरा उतरने को कहा।
उप राष्ट्रपति ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को गरीबी, अशिक्षा, भय, भ्रष्टाचार, भूख और भेदभाव से मुक्त ‘नये भारत’ का निर्माण करने के लिए अथक प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा क्षेत्र में बेहतरी के लिए गुणवत्तापूर्ण दृढ़ विश्वास अत्यंत आवश्यक है। निजी एवं सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्थानों में व्यावसायिकरण और कमजोर प्रशासन की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने कठोर उपाय करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो निश्चित तौर पर किसी भी व्यक्ति को और ज्यादा उत्पादक बनाने के साथ साथ उसे सामाजिक, आचार-विचार एवं नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण जवाबदेह व्यक्ति बनाये।
श्री नायडू ने कहा कि युवा आबादी की बदौलत भारत को कई मायनों में बढ़त हासिल है लेकिन उनका कौशल विकास सुनिश्चित करना और युवाओं को विभिन्न पेशों से जुड़ आधुनिक प्रशिक्षण देना अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे कुशल श्रमबल के रूप में विकसित हो सकें। उन्होंने कहा कि देश के पारम्परिक ज्ञान आधार को संरक्षित करना और इसे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ एकीकृत करना अत्यंत जरूरी है, क्योंकि हम एक ज्ञान आधारित समाज के निर्माण की दिशा में बड़ तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने शिक्षा प्रणाली के निर्माताओं से एनसीसी, एनएसएस इत्यादि के जरिए विद्यार्थियों में स्वयंसेवा की भावना विकसित करने के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं में शिक्षण पर ध्यान केन्द्रीत करने को भी कहा।
उपराष्ट्रपति ने शिक्षा क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाने में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए इग्नू जैसे संस्थानों से नियमित शिक्षण प्रदान करने के अलावा विद्यार्थियों में आईसीटी कौशल विकसित करने को भी कहा। इससे वे अपने कार्य क्षेत्रों कृषि, उद्योग, बिजनेस अथवा सेवा सेक्टर में इसका व्यापक उपयोग कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा पढ़ई-लिखाई या शिक्षण का सर्वोत्तम साधन है, क्योंकि यह इंटरनेट के जरिए देश के सुदूरतम क्षेत्रों में भी शिक्षा को सुगम बनाने में समर्थ है और इसके साथ ही यह साक्षरता दर को बढ़ने में भी मददगार है।
उन्होंने कहा कि देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, आयुर्वेद और योग ने विश्व भर में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है। संयुक्त राष्ट्र में 177 देशों द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने संबंधी प्रस्ताव का अनुमोदन किया जाना विश्व में भारत के बढ़ते प्रभाव का स्पष्ट प्रमाण है। उन्होंने विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को विशेषकर योग एवं आयुर्वेद के क्षेत्रों में विशाल स्वदेशी ज्ञान आधार को प्रोत्साहित करने को कहा।
श्री नायडू ने कहा कि आयुर्वेद निदान, उपचार और चिकित्सा से जुड़ ज्ञान के प्रमुख ह्मोत के रूप में उभर कर सामने आया है। उन्होंने कहा कि मरीजों के हित में प्रत्येक चिकित्सा प्रणाली को गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए और इसके साथ ही व्यापक अनुसंधान एवं नैदानिक परीक्षण आधारित होना चाहिए। विद्यार्थियों से देश की संस्कृति, परम्पराओं और विरासत के संरक्षण के प्रति वचनबद्ध रहने का अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा कि साथ ही वे पर्यावरण को भी प्राथमिकता दें। इस अवसर पर इग्नू के कुलपति प्रो. नागेश्वर राव, उपकुलपति प्रो. रविन्द्र रामाचंद्रन कन्हेरे, रजिस्ट्रार, स्कूल ऑफ स्टडीज के निदेशक, विभिन्न प्रभागों एवं यूनिटों के प्रमुख, विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य, स्टाफ मेम्बर और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।