डिजिटल न्यूज पोर्टल द लीफलेट का कहना है कि भारत सरकार द्वारा बनाए गए नए IT नियम “बोलने की आजादी के मूलभूत अधिकार (freedom of Speech) पर हमला है।” पोर्टल ने पिछले सप्ताह बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर नए आईटी नियमों को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता), 19ए (भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी), 19 (1)(जी) (कोई भी पेशा करने, या नौकरी, व्यापार करने की आजादी) का उल्लंघन करता है।
द लीफलेट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डैरियस खम्बाता ने गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ के समक्ष कहा कि इन नियमों का ‘‘नकारात्मक असर मौलिक अधिकारों पर पड़ता है जिसकी गारंटी संविधान में दी गई हैं।’’
उन्होंने कहा , ‘‘वे (नियम) बोलने की आजादी के मूलभूत अधिकार पर हमला करते हैं। नियम कहता है कि अगर नए संगठन आचार संहिता का अनुपालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई हो सकती है।’’
केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल अनिल सिंह ने पीठ से कहा कि देशभर की विभिन्न अदालतों में इस मामले को लेकर कुल 10 याचिकाएं दायर की गई हैं। इसलिए, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है।
उन्होंने बताया, ‘‘इस मामले पर नौ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।’’ इसके बाद हाई कोर्ट ने द लीफलेट की याचिका पर सुनवाई 16 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी। वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने भी नियमों के मनमाना और गैर कानूनी होने का दावा करते हुए जनहित याचिका दायर की है। उनकी याचिका पर भी 16 जुलाई को सुनवाई होगी।