देहरादून : देहरादून नारी निकेतन में दिव्यांग संवासिनियों से दुष्कर्म और गर्भपात कराने के मामले में नौ आरोपियों को अदालत ने दोषी करार दिया है। शासकीय अधिवक्ता संजीव सिसौदिया ने बताया कि देहरादून में अपर जिला जज षष्ठम की अदालत में सभी नौ आरोपियों का दोष सिद्ध हुआ।
बताया गया कि दोषियों की सजा पर आगामी सोमवार को बहस होगी। गौर हो कि साल 2015 में देहरादून नारी निकतन में संवासिनियों से दुष्कर्म और गर्भपात कराने के बाद भ्रूण छुपाने का मामला सामने आया था। हालांकि प्रबोशन अधिकारी मीना बिष्ट ने तो मामले को सिरे से नकार दिया था। महिला कांग्रेस ने भी भ्रमण कर नारी निकेतन में कुछ ना होने की एक तरफा रिपोर्ट जारी कर दी थी।
शोर-शराबा हुआ तो तत्कालीन डीएम ने एडीएम झरना कामठान की अगुवाई वाली जांच टीम गठित की गई। टीम ने तथ्यों के आधार रिपोर्ट दी थी कि नारी निकेतन में कुछ ना कुछ गड़बड़ है। शासन के आदेश पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नगर अजय सिंह की अगुवाई में एसआईटी गठित हुई तो मूक बधिर पीड़ित संवासिनी तक पहुंचने में 48 घंटे से अधिक का समय नहीं लगा। बाद में मेडिकल आधार पर संवासिनी के गर्भपात की पुष्टि हुई। एसआईटी ने अगले दिन दूधली के जंगल से भ्रूण बरामद किया। नारी निकेतन इसके बाद नारी निकेतन अधीक्षिका समेत कई लोगों को जेल जाना पड़ा था।
चौकीदार ने ही संवासिनी को अपनी हवस का शिकार बनाया था
नारी निकेतन के चौकीदार ने ही संवासिनी को अपनी हवस का शिकार बनाया था। डीएनए रिपोर्ट से इस पर मोहर भी लग गई थी। एसआईटी की जांच में आया कि दुराचार की घटना पर पर्दा डालने के लिए यह गर्भपात किया गया था। इस खुलासे के बाद शासन की नींद टूटी तो सुधार की प्रकिया शुरू हुई।
मानसिक रोगी संवासिनी और मूक-बधिर को अलग-अलग करने के मूक-बधिर की भाषा समझने के लिए अलग से एक्सपर्ट रखे गए। यही नहीं संवासिनी को नियमित योग कराने के साथ उन्हें धूप बत्ती, कैंडल आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। मूक-बधिर संवासनियों को वोट तक अधिकार देने के लिए पहचान-पत्र बनाए गए।