गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने राज्य में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के मामलों की सुनवाई के लिए अतिरिक्त विशेष अदालतें स्थापित करने के लिए केंद्र से सिफारिश करने से इनकार कर दिया है। एक आला अधिकारी ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी।
मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति निराल आर मेहता की खंडपीठ द्वारा किए गए प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उक्त अधिनियम के तहत केवल 12 मामले हैं और दो विशेष अदालतों को उक्त उद्देश्य के लिए विशेष अदालतों के रूप में निर्धारित किया गया है।
खंडपीठ ने एक आदेश में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त रजिस्ट्रार (प्रशासन) द्वारा आपराधिक अपील विभाग के डिप्टी रजिस्ट्रार को 17 नवंबर को लिखे गए एक पत्र का उल्लेख किया। अदालत ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि पत्र के अनुसार, अस्वीकृति का आधार यह था कि उक्त अधिनियम के तहत केवल 12 मामले हैं और इस उद्देश्य के लिए दो विशेष अदालतें निर्धारित की गई हैं।
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अदालत ने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया था कि वह एनआईए अधिनियम, 2008 की धारा 11 (6) के तहत प्रदान की गई विशेष अदालत में कम से कम दो और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए केंद्र को सिफारिश करने पर विचार करें, ताकि मुकदमा तेजी से आगे बढ़ सके और विचाराधीन कैदी को लंबे समय तक जेल में नहीं रहना पड़े।”
यह अनुरोध एनआईए की एक विशेष न्यायाधीश ने किया था। उन्होंने बताया कि वह एनआईए के तहत दर्ज लगभग सात मामलों की प्रभारी हैं और वह 2002 के नारोदा गाम दंगों के मुकदमे की भी सुनवाई कर रही हैं। विशेष न्यायाधीश ने यह भी दावा किया था कि उन्हें शहर की दीवानी न्यायाधीश के रूप में दूसरे न्यायिक कार्य और दीवानी और सत्र अदालत के प्रशासनिक कार्य भी करने होते हैं।
जमानत याचिका परर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय को बताया गया कि पिछले तीन महीने में एक विशेष एनआईए अदालत ने मामले में सिर्फ एक गवाह से पूछताछ की और अभियोजन करीब 47 गवाहों से पूछताद करना चाहता हैं जिसम कम से कम छह महीने लगेंगे।
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पिछले पांच साल से जेल में रहने के तथ्य के मद्देनजर अतिरिक्त सालिसीटर जनरल से कहा कि वह आवयक निर्देश प्राप्त करें कि क्या अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश से एनआईए का मामला प्रभावित होगा। इस मामले में अब 29 नवंबर को आगे सुनवाई होगी।