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मध्य प्रदेश में अनुभव व काबिलियत के बावजूद नेता नहीं बन पाए मंत्री

नेताओं का सबसे नकारात्मक पक्ष यह रहा कि उनकी किसी बड़े नेता ने पैरवी नहीं की। ये वे नेता हैं, जो दो या दो से ज्यादा बार विधायक निर्वाचित हुए हैं।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता मिल गई है, सरकार का गठन हो चुका है, मगर कई नेता ऐसे हैं जो अनुभव व काबिलियत के बावजूद मंत्री नहीं बन पाए, क्योंकि उन्हें नेताओं का संरक्षण हासिल नहीं था। कांग्रेस के भीतर की नेताशक्ति ने साबित कर दिया है कि चुनाव जीतना और बात है, और मंत्री बनना दीगर बात। मंत्री बनने की सबसे बड़ी योग्यता नेता का करीबी या नाते-रिश्तेदार होना है। कांग्रेस को पूर्ण बहुमत न मिलने के बावजूद सरकार बन गई है, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 28 मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह दी है। विभागों का भी बंटवारा हो गया है।

राज्य की नई सरकार ने एक बात तो साफ कर दी है कि जो जितने बड़े नेता का करीबी है, उसे उतना ही बड़ा और महत्वूपर्ण विभाग मिला है, चाहे इसके लिए सक्षम और योग्यताधारी व्यक्ति की उपेक्षा क्यों न करना पड़ी हो। राज्य के नवगठित मंत्रिमंडल में जिन 28 मंत्रियों को जगह मिली है, उनमें नौ कमलनाथ, सात-सात दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बताए जा रहे हैं, जबकि चार ऐसे हैं जिन्हें सीधे तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर मंत्री बनाए जाने की बात है। बड़े नेताओं का कोटा तय होने के कारण कई ऐसे नेता मंत्री नहीं बन पाए हैं, जो अनुभव व वरिष्ठता के मामले में दूसरों से कहीं आगे थे।

यही कारण है कि कई स्थानों से असंतोष के स्वर उभरे, उनके समर्थकों ने सड़क पर उतर का प्रदर्शन किया। पूर्व मंत्री के.पी. सिंह, एदल सिंह कंसाना के दिल्ली दरबार तक पहुंचने की बातें सामने आईं। सूत्रों का दावा है कि कुछ नेताओं से राहुल गांधी की मुलाकात भी हुई, जिस पर उन्हें जो जवाब मिला, उससे कई नेताओं के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। राहुल ने इन नेताओं से कहा कि वे जिसके करीबी हैं, उसने ही मंत्री बनाने का नाम नहीं दिया तो क्या किया जा सकता है। नई सरकार में जो विधायक मंत्री नहीं बन पाए हैं, उनमें के.पी. सिंह, एदल सिंह कंसाना, एन.पी. प्रजापति, राजवर्धन सिंह ‘दत्तीगांव’, फुंदेलाल सिंह, हिना कांवरे, दीपक सक्सेना, हरदीप सिंह डंग, झूमा सोलंकी प्रमुख है।

इन नेताओं का सबसे नकारात्मक पक्ष यह रहा कि उनकी किसी बड़े नेता ने पैरवी नहीं की। ये वे नेता हैं, जो दो या दो से ज्यादा बार विधायक निर्वाचित हुए हैं। वहीं कई विधायक ऐसे हैं जो दूसरी बार जीते हैं और मंत्री बन गए। कई विधायकों और उनके समर्थकों ने खुले तौर पर राज्य के प्रमुख नेताओं पर आरोप लगाए हैं।

राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा का मानना है कि कांग्रेस की गुटबाजी एक बार फिर सतह पर आ गई है, मंत्री बनाने में कई बड़े नेताओं की उपेक्षा का आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केा नुकसान उठाना पड़ सकता है। दूसरी ओर, कांग्रेस की नीति यह हो सकती है कि बड़े नेताओं को मंत्री बनने की बजाय उन्हें लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगाया जाए, मगर कुल मिलाकर इस एपीसोड से नुकसान तो कांग्रेस को ही होने वाला है।

राजनीतिक वारिसों को स्थापित करने की कोशिश ने कांग्रेस की छवि को भी प्रभावित किया है। कांग्रेस यहां जीती मुश्किल से है, और अब जो हो रहा है वह राजनीतिक लिहाज से कांग्रेस और राज्य दोनों के लिए अच्छा तो नहीं माना जाएगा।

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